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हमारी बेटी…सुंदरी

डोली शाह
हैलाकंदी (असम)
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गोरा चट्टा, छरहरा बदन, टमाटर जैसे गाल, पतली- पतली टांगे, फूंक मारो तो हवा में उड़ जाए। इतराती- इठलाती छोटे-से चेहरे की मासूमियत देख एक स्पर्श से कोई न चूकता। कभी कोई गोद में उठा लेता तो कभी अपने पास बुला लेता। देखते-देखते ढाई साल बीत गए। नीलू विद्यालय जाने लगी। अब पूरे गाँव-मोहल्ले में इसकी सुंदरता की चर्चाएं होने लगी, जिससे कुछ लोग तो उसे सुंदरी ही कह देते। पिता की लाड़ली, माँ की दुलारी एक बार कहने मात्र से हर जरूरत पूरी हो जाती, वहीं नीलू की माँ सीता इकलौती बेटी की हर इच्छाएं पूरी होती देखना चाहती थी। नीलू की भव्यता के साथ ही उसके पहनावे में भी अद्भुत दृश्य देखने को मिलता। वक्त के साथ बड़े होने पर उसमें खुद कुछ हट कर अलग करने की इच्छा जगने लगी। हर किसी के साथ मृदुल व्यवहार उसे अपने-आपमें गौरव का अनुभव कराता।
वह शुरू से ही पढ़ाई तो बहुत करती, लेकिन पिता की इच्छाएं, उसकी सुंदरता को देख उससे हर कोई बातें करने में अपना गौरव समझता। हर कोई उससे बातें करने के नए-नए बहाने ढूंढता।
एक दिन रमेश ने नीलू से विज्ञान की नोट बुक मांगी। रमेश ने नोट्स तो लिख लिए, परन्तु उसमें एक छोटी-सी पर्ची में प्यार का संबोधन ‘आई लव यू’ लिखा था। नीलू की नजर उस पर पड़ते ही आश्चर्य भरी नजरों से देखती रही, मानो दिल के अरमानों को पढ़ने का प्रयास कर रही हो।
हर दिन की तरह लंच ब्रेक हुआ। कुछ छात्र यूँ ही सैर- सपाटा करने, कुछ कैंटीन तो कुछ आइसक्रीम की चुस्कियाँ लेने निकल गए।
रमेश हर दिन की तरह आज भी कक्षा में ही बैठा रहा। नीलू के मन में सवालों के भंवर ने उसे भी कहीं न जाने दिया। रमेश मुँह पर उंगली रखे चुपचाप उंगलियां दौड़ा रहा था।
नीलू उसके पास जाकर बोली,-“क्या लिख रहे हो…?”
“विज्ञान…।” उसने संक्षिप्त-सा उत्तर दिया।
“क्या हुआ, इतने घबराए क्यों लग रहे हो…?”
“बस यूँ ही…।”
नीलू ने मुस्कुराकर पर्ची दिखाई, -“इसके लिए….?”
“हाँ, वह गलती से…।” उसने हकलाते हुए कहा। वह नीलू से आँखें नहीं मिला पा रहा था।
“अच्छा, मतलब गलती से मेरी कॉपी में यह तुमने रख दिया।..तो किसी और की नोटबुक में रखना चाहते थे!” वह तपाक से बोली।
“अरे नहीं! वो,।”
“दिखाओ जरा….।”
रमेश ने कलम से काटना चाहा। रमेश तुम कागज के टुकड़े पर लिखी भावनाओं को तो मिटा दोगे, लेकिन दिल पर किसी की भावनाओं को मिटाना क्या इतना आसान होता है ? शायद यह तुमने किसी और के लिए लिखा हो लेकिन मेरी भावनाओं को स्पर्श कर गया….।” कहकर नीलू मौन हो गई। रमेश भी सोच में पड़ गया, लेकिन निशब्द स्वर में चुपचाप ही रहा।
लंच ब्रेक खत्म हुआ, सभी विद्यार्थी कक्षा में आ गए। अब नीलू उसे अक्सर ही देखती रहती । रमेश के अंदर लड्डू की सीमाएं ना थी, लेकिन अब रमेश-नीलू दोनों अक्सर वक्त की तलाश करते। अब वह घर से टिफिन भी लाती, तो रमेश को बिना दिए कभी लंच ना करती। दोनों को ही बाहरी दुनिया से कोई मतलब न रहता, वह एक दूसरे में ही खोए रहते।
नीलू का बदला व्यवहार देख छात्रों को भी कुछ अटपटा-सा लगता। कुछ विद्यार्थी तो उसे व्यंग्य भी कर देते-नीलू पूरी तरह बदल चुकी है। उसे सिर्फ हर जगह रमेश ही रमेश दिखता है, बाकी हम सब तो उसके लिए बेकार हैं।
नीलू कटाक्ष करते हुए कहती भी -“ऐसी कोई बात नहीं…” लेकिन कटाक्ष करते हुए कहती भी कि “सब कुछ छिप जाए, लेकिन प्रेम रस न छिपे…।”
धीरे-धीरे यह बातें कक्षा, फिर मोहल्ले तक भी पहुंच गई। यह बात सुनते ही उसके पापा के पैरों तले से जमीन खिसक गई। पापा ने क्रोधित स्वर में पत्नी सीता से कहा, तो सीता भी बहुत चिंतित हुई। हालात को संभालते हुए बोली- “आप अपनी बेटी के स्वभाव को भली-भांति जानते हैं। वह हर किसी से घुल-मिल जाती है। इसका मतलब यह तो नहीं कि, वह…।” हर वक्त कटाक्ष करने पर वह नीलू का साथ देती,
लेकिन दसवीं की परीक्षा ने माता-पिता की इच्छाओं को हिला दिया। अब अध्यापकों के साथ लोगों की नजरों से भी दोनों न बच पाते। माता-पिता नीलू को अक्सर समझाने की कोशिश करते- “पढ़ने-लिखने की उम्र में इन चीजों में वक्त बरबाद ना करो। इससे तुम्हारी रचना, गठन और सेहत पर भी बहुत बुरा असर पड़ेगा।” लेकिन नीलू और रमेश की दोस्ती पर किसी प्रकार का कोई प्रभाव न पड़ता। एक दिन पिता दफ्तर से आ गुमसुम से बैठे थे।
पत्नी सीता ने पूछा,-“क्या हुआ…?”
“पड़ोसी नंदू चाचा नीलू के ब्याह की सलाह दे रहे थे।”
“क्या!! वह क्यों ??”
“मत पूछो, एक बेटी है, वह भी जीने नहीं दे रही है !!”
“उन्हें दिखता नहीं! वह अभी १६ साल की भी नहीं हुई है। उनकी नजर में शादी-विवाह कोई बच्चों का खेल है क्या!!! उनकी नाती अर्चना और संरचना दोनों ही छुप कर लड़कों के साथ पिक्चर देखने से लेकर कितनी ही पार्टी कर मौज-मस्ती करते हैं। मेरी बेटी का तो हम कक्षा छठवीं से ही सुनते आ रहे हैं, आज ५ साल हो गए। उसने कभी कोई गलत कदम नहीं उठाया।”
नीलू घर आई। दोनों मौन हो गए। आखिर क्या कमी है हमारी परवरिश में, जो इसी उम्र से हमारी बेटी…!!”
उधर, नीलू और रमेश दोनों हर दिन कम से कम १ घंटा तो जरूर साथ बिताते। अब नीलू किसी से भी जरूरत से ज्यादा बात भी नहीं करती, जिससे अन्य विद्यार्थी उसे व्यंग्यात्मक ढंग से कह भी देते -रमेश ने इस पर क्या जादू कर दिया है…? बता ना.. क्या जादू किया है ?
“तुम नहीं समझोगे…।”
“बता ना, तूने उसमें ऐसा क्या देखा…,जो तेरी नजरें औरों की तरफ जाती ही नहीं…।”
“मेरी नजरों से देखो तो समझ में आएगा मेरा चाँद, मेरा सूरज, मेरा आसमान, मेरा पूरा ब्रह्मांड सिर्फ रमेश में है…।”
“अच्छा, माननी पड़ेगी तेरी पसंद…।”
रमेश के चेहरे पर भी संतुष्टि का अलग तेज दिखता। दोनों के बीच मनचाही पूर्णता देखते ही बनती। सिर्फ १ घंटा ही दोनों के बीच संतुष्टि की चादर चढ़ाने के लिए काफी होता। बाकी समय में वह साथ दिखते जरूर, लेकिन कार्य कुशलता में कोई कमी ना रहती। दोनों मन लगाकर पढ़ाई करते, जिससे ३३ फीसदी लाने वाला रमेश अब ७० प्रतिशत तक लाने लगा। कहते हैं ना- “जैसा साथ, वैसा विकास।”
अब रमेश के पिता भी बेटे का विकास देख बहुत खुश होते। उसके चेहरे का तेज देख उन्हें बहुत ही संतुष्टि मिलती। अध्यापक भी नीलू के प्रेम-प्रसंग को देख बहुत खुश होते। कम से कम औरों की अपेक्षा वह मन लगाकर पढ़ तो रहे हैं। सबके साथ मिलनसार व्यवहार नीलू की सारी गलतियों पर मिट्टी डाल देता। देखते-देखते उसने १२वीं की परीक्षा दी और उसमें मिले ९८ फीसदी अंकों ने पिता को शिकायत का कोई मौका नहीं दिया। सभी अभिभावकों के सामने विद्यार्थियों के अंकों की घोषणा की गई। सभा में नीलू के अंक सुन सब की आँखें फटी की फटी रह गई। नीलू के अंक आसमान की ऊंचाइयों को छू रहे थे। हर किसी के मुख पर उसकी वाह-वाही सुन पिता का सीना चौड़ा हो रहा था। सबके चेहरे की हवाइयाँ देख पिता का हृदय बेटियों की पतंग को और स्वच्छंदता से उड़ने की सुरक्षा देना चाहता था।
इधर, रमेश के पिता शिव मंगल भी उसके अंकों से काफी संतुष्ट थे। रमेश इस बार बहुत आगे निकल चुका था। पिता सभा समाप्त कर मिठाई का पोटला लिए घर पहुंचे।
नीलू डरी-सहमी सी पिता का इंतजार कर रही थी। चुप्पी की चादर ओढ़े फाटक तक पहुंचे ही थे कि, “माँ ने पूछा, “कितने परसेंट लाई है ? अच्छे कॉलेज में दाखिला हो जाएगा ना ??”
पिता को मौन देख माँ सीता की हवाइयाँ उड़ रही थी। कुछ ना कहते हुए भी वह बहुत कुछ कह रही थी… -“बताइए ना प्लीज…!”
“नीलू को बुलाओ।”
“आई पापा…।” थरथराते- कांपती हुई आई…। पिता ने पोटली से मिठाई का एक टुकड़ा निकाला,-“लो! बेटा, मुँह मीठा करो…९८ परसेंट आए हैं!” यह सुन नीलू के पैर जमीन पर नहीं टिक रहे थे, वहीं माँ खुशी के फूल बरसा रही थी। इतने में माँ कहने लगी,-“नीलू पर उंगली उठाने वालों के लिए एक जबरदस्त तमाचा है। वाह! बेटा वाह…।”
पिता की हल्की मुस्कुराहट सीता को और भी बहुत कुछ कहने का मौका दे गई। गर्व से बोली,-“मैं कहती थी ना, मेरी बेटी कभी गलत नहीं हो सकती… देख लिया आपने।
…मेरी बेटी हर दिन बदल- बदल कर पत्तल नहीं चाटती और वही उसकी इस कामयाबी का मूल कारण भी है।”
इतने में उसने पिता का सेल फोन लेकर रमेश के अंक जानने की जिज्ञासा की। नीलू के इस बर्ताव को देख माता-पिता वाक रह गए। रमेश के अंकों ने नीलू को भी बहुत खुश कर दिया। दोनों ही खुशी के समुद्र में गोते लगा रहे थे।
सीता ने पिता को सांत्वना दी और मौन रहने की सलाह दी कि, “कोई बात नहीं ..हम सब कुछ तो जानते ही हैं…।”
शिव, मंगल और सीता दोनों की खुशी का ठिकाना ना रहा। इतने में नीलू बोली-” “पापा आपने कहा था मेरा प्लस टू में ९०% से ऊपर आएगा तो मुझे अच्छा-सा १ एंड्रॉयड फोन खरीद कर देंगे ?”
“हाँ बेटा, मुझे याद है।”
सीता बाप-बेटी का प्यार देख बहुत खुश हो रही थी। बोली,- “शहर चलिए, मोबाइल भी खरीदना हो जाएगा और दोपहर का भोजन भी।
“हाँ, हाँ” नीलू ने कहा-“मैं तैयार होकर आती हूँ।”
भगवान को शुक्रिया अदा कर सीता कहने लगी-“देखा आपने, वैसे भी तो कहा जाता है ‘प्यार ताकत होता है, कमजोरी नहीं। “
“और छोटी उम्र से ही रमेश का प्यार उसके लिए एक बहुत बड़ी ताकत बना।”
“सचमुच, आपकी बात १०० टके की है…।” जाइए अब आप भी तैयार हो जाइए।
“हाँ-हाँ, मैं तो बेटी की खुशी देख भूल ही गई।”

नीलू तैयार होकर निकली ही थी कि, सीता ने एक सेल्फी की मांग की। सेल्फी के साथ ही घर से तीनों निकले। राह चलते माता-पिता का सिर गर्व से ऊपर हो रहा था। पूरे शहर में नीलू के अंकों की चर्चा हो चुकी थी। सभी नीलू की तरफ नज़रें उठा कर देखते ही जा रहे थे। पिता के मुँह से सिर्फ यही निकल रहा था-“बेटी हो तो हमारे जैसी..।”