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भाषा न्यारी-सी…

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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हिंदी की बिन्दी…

भाषा न्यारी-सी, भारत की हिंदी।
सजती दुल्हन-सी, हिंदी की बिन्दी॥

दुनिया में हिंदी का, सम्मान सजता है,
इसकी मिठास का, जग गान करता है।
हर अक्षर से इसके, गीतों की धुन सजती,
जब बिखरे वादी में, मन मुग्ध रहता है।

शब्दों-वाक्यों की, है पुस्तक हिंदी,
सजती दुल्हन-सी, हिंदी की बिन्दी।
भाषा न्यारी-सी…॥

गणतंत्र बड़ा सबसे, सारी दुनिया इसमें,
दुनियाभर की भाषा, होती किस देश में।
भारत में होता है, हर भाषा का संगम,
लहराता है हरदम, बस हिंदी का परचम।

आधार बनी रहती, हर भाषा की हिंदी,
सजती दुल्हन-सी, हिंदी की बिन्दी।
भाषा न्यारी-सी…॥

सपना नहीं है ये, सच कर दिखलाएंगे,
हिंदी को भारत की, हर युग में सजाएंगे।
अन्जाम रहित आगाज्, ईश्वर ही रच सकते,
विश्वास है मन में, ईश्वर भी आएंगे।

जग-जीवन है अनंत, अनंत हो हिंदी,
सजती दुल्हन-सी, हिंदी की हिन्दी।
भाषा न्यारी-सी…॥

परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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