दिल्ली
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यौन शोषण के विरुद्ध संघर्ष का विश्व दिवस (४ मार्च) विशेष…
यौन शोषण दुनिया के लिए बड़ी समस्या है, जो दुनियाभर में है। कुछ देशों में महिलाएं अधिक असुरक्षित, यौन उत्पीड़न, शोषण एवं हिंसा की शिकार हैं। इनमें दक्षिण पूर्व एशिया, पूर्वी यूरोप और कुछ लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों शामिल हैं। भारत की स्थिति भी बहुत ज्यादा अच्छी नहीं कहीं जा सकती। वेश्यावृत्ति के उद्देश्यों के लिए इन क्षेत्रों की तस्करी वाली महिलाओं को आम तौर पर तथाकथित विकसित दुनिया के देशों में ले जाया जाता है। महिलाओं को इसी त्रासदी से मुक्ति दिलाने के लिए ही दुनियाभर में ४ मार्च को ‘यौन शोषण के विरुद्ध संघर्ष का विश्व दिवस’ मनाया जाता है। इसका उद्देश्य महिलाओं को यौन शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए प्रेरित करना है। यह अनुमान लगाया गया है कि हर दिन औसतन ८ महिलाएं, लड़कियाँ और अक्सर युवा लड़कों का यौन शोषण किया जाता है।
यूनिसेफ ऐसे सभी प्रकार के यौन दुराचार, यौन उत्पीडन, अत्याचार और यौन हिंसा से निपटने के लिए प्रतिबद्ध है। यौन शोषण वास्तविक या धमकी भरा शारीरिक अतिक्रमण है, चाहे बलपूर्वक या असमान परिस्थितियों में, सहायता कार्यकर्ताओं द्वारा उन बच्चों और परिवारों के खिलाफ किया जाता है, जिनकी हम सेवा करते हैं।
यौन उत्पीड़न समाज में हर जगह पसरा है। कार्यस्थल, शैक्षणिक संस्थान और घर से लेकर धार्मिक स्थलों में महिलाएं एवं बालिकाएं असुरक्षित हैं। ग्रामीण इलाकों में २६ प्रतिशत महिलाएं, शहरी इलाकों में २१ प्रतिशत और उपनगरीय इलाकों में १८ प्रतिशत महिलाएं यौन उत्पीड़न की शिकार होती हैं। महाविद्यालय के २-तिहाई छात्र यौन उत्पीड़न का अनुभव करते हैं। १२-१७ साल की उम्र के १.६ प्रतिशत बच्चे बलात्कार या यौन उत्पीड़न के शिकार होते हैं।
यौन उत्पीड़न का शिकार हुई ४ किशोर बालिकाओं एवं बच्चों में से लगभग ३ यानी ७४ प्रतिशत कोई ऐसी बालिका या बच्चे अपने ही किसी परिचित से हुए, जिसे वे अच्छी तरह से जानती थीं। यौन शोषण कई तरह से किया जाता है, जैसे अवांछित यौन स्पर्श ४९ प्रतिशत, साइबर यौन उत्पीड़न ४० प्रतिशत, अवांछित जननांग प्रदर्शन ३० प्रतिशत, शारीरिक रूप से पीछा किया जाना २७ प्रतिशत और यौन उत्पीड़न २३ प्रतिशत है।
यह दिवस देश एवं दुनिया में महिलाओं और बालिकाओं के साथ हो रहे यौन शोषण के मामलों पर लगाम लगाने के लिए जागरूकता की मुहिम है। इसका मुख्य उद्देश्य यौन शोषण और वेश्यावृत्ति में लिप्त महिलाओं को बचाकर उन्हें सामान्य जीवन जीने के लिए प्रेरित करना भी है। महिलाओं एवं बालिकाओं पर बढ़ते यौन अत्याचारों को देखते हुए यह प्रतीत होता है कि इक्कीसवीं सदी का सफर करते हुए तमाम तरह के विकास के वायदे खोखले साबित हो रहे हैं। भारत के लिए निश्चित रूप से यह चिंताजनक है और हमारी विकास-नीतियों पर सवाल भी उठाती है। बड़ा सवाल तो तब खड़ा हुआ जब सर्वोच्च न्यायालय में पेश आँकड़ों के मुताबिक २०१६ में ही देशभर में करीब १ लाख बच्चे यौन अपराधों के शिकार हुए। कितनी विडम्बना है कि देश में हम ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा बुलन्द करते हुए एक जोरदार मुहिम चला रहे हैं, उस देश में लगातार बालिकाएं यौन शोषण का शिकार हो रही है। यह दाग ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के संकल्प पर भी लगा है और यह दाग हमारे द्वारा नारी को पूजने की परम्परा पर भी लगा है, लेकिन प्रश्न है कि हम कब बेदाग होंगे ? अच्छे भविष्य के लिए हम बेटियों की पढ़ाई से ही सबसे ज्यादा उम्मीदें बांधते हैं, लेकिन वर्तमान की हकीकत इससे उलट है। वे पढ़ाई में अपने झंडे भले ही गाड़ दें, लेकिन उन्हें आगे बढ़ने से रोकने की क्रूरताएं कई तरह की हैं। उसका मुख्य कारण है सदियों से चली आ रही कुरीतियाँ, अंधविश्वास व भोग्या समझने की विकृत मानसिकता।
बालिकाओं के साथ होने वाली त्रासद एवं अमानवीय घटनाएं -निर्भया कांड, नितीश कटारा हत्याकांड, प्रियदर्शनी मट्टू बलात्कार व हत्याकांड, जेसिका लाल हत्याकांड, रुचिका मेहरोत्रा आत्महत्या कांड, आरुषि हत्याकांड की घटनाओं में पिछले कुछ सालों में भारत ने कुछ और ऐसे मौके दिए, जब अहसास हुआ कि भ्रूण में किसी तरह नारी अस्तित्व बच भी जाए तो दुनिया के पास उनके साथ और भी बहुत कुछ है बुरा करने के लिए। स्वतंत्र भारत में यह कैसा समाज बन रहा है, जिसमें महिलाओं की आजादी छीनने की कोशिशें और उससे जुड़ी यौन उत्पीड़न एवं हिंसक की त्रासदीपूर्ण घटनाओं ने बार-बार हम सबको शर्मसार किया है।
एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के विरूद्ध अपराध में राष्ट्रीय औसत ६६.४ प्रतिशत है। राजधानी दिल्ली का स्थान १४४.४ अंकों के साथ सर्वाेच्च है। माना जाता है कि ९० प्रतिशत यौन उत्पीड़न जान-पहचान के व्यक्ति ही करते हैं। यानी बालिकाएं अपने ही घर या परिचितों के बीच सबसे ज्यादा असुरक्षित है। महिला एवं बाल विकास कल्याण मंत्रालय के अध्ययन में भी यही बात सामने आई है। बढ़ रहे यौन अपराधों पर नियंत्रण पाने के लिए व्यापक प्रयत्नों की अपेक्षा है। इसलिए बालिकाओं एवं बच्चों से खुलकर बात करें। उनकी सुनें और समझें। पुलिस में बेझिझक शिकायत करें। बच्चों को ’गुड टच-बैड टच’ के बारे में बताएं। जब कोई अपराध करता हुआ पकड़ा जाता है तो उसे त्वरित न्याय अदालत के ज़रिए जल्द से जल्द सज़ा मिलनी चाहिए। जल्द सज़ा समाज में सख्त संदेश देती है कि ऐसा अपराध करने वाले बच नहीं सकते। यौन अपराध करने वालों को जल्द से जल्द सजा दिलाने का कानून का सही परिप्रेक्ष्य में तत्परता से पालन होना चाहिए।