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मंजिल सामने है

संदीप धीमान 
चमोली (उत्तराखंड)
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मंजिल सामने है, सफ़र पर हूँ,
उम्र घट रही है, सबर पर हूँ।

भीड़ छोड़, तनहाईयों में हूँ,
ढलते वक्त की डगर पर हूँ
मैं जवानी से ढलता बुढ़ापा हूँ,
नज़रें टिकाए अंतिम खबर पर हूँ।

भूख-प्यास अब लगती नहीं है,
साज-सज्जा भी जमती नहीं है।
जमती है तो बस अब नब्ज,
क्योंकि, मौत की अब मैं नजर पर हूँ॥