डॉ.एन.के. सेठी
बांदीकुई (राजस्थान)
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रावण बैठा है घर-घर में,
अपने अंदर राम सॅंवारो।
दोष नहीं देखें पर जन में,
अपने मन के ‘मैं’ को मारो॥
हर बार जलाते पुतले को,
रावण कभी नहीं है मरता।
घर-घर में है कथा राम की,
अट्टहास दसकंधर करता॥
बीत चुके हैं वर्ष सहस्रों,
अब तो राघव मन में धारो।
दोष नहीं देखें पर जन में,
अपने मन के ‘मैं’ को मारो…॥
कहीं मंथरा चुगली करती,
सूर्पनखा छलछंद रच रही।
शासक राजधर्म को भूले,
सीता भी वनवास सह रही॥
फिर से राक्षस वध करने को,
दाशरथि शर चाप को धारो।
दोष नहीं देखें पर जन में,
अपने मन के मैं को मारो…॥
केवल तन जलता रावण का,
आत्मा नहीं मरा करती है।
दसकंधर जिंदा घर-घर में,
सीताएं हरदम डरती हैं॥
फिर से रावण का वध करके,
कलियुग में सीता को तारो।
दोष नहीं देखें पर जन में,
अपने मन के ‘मैं’ को मारो…॥
काम क्रोध मद लोभ मोह के,
मन से अब दसग्रीव मिटाओ।
पत्थर की अभिशप्त अहिल्या,
उसका भी अभिशाप हटाओ॥
जीवन के इस धर्मयुद्ध को,
लड़ो हमेशा कभी न हारो।
दोष नहीं देखें पर जन में,
अपने मन के ‘मैं’ को मारो…॥
परिचय-पेशे से अर्द्ध सरकारी महाविद्यालय में प्राचार्य (बांदीकुई,दौसा) डॉ.एन.के. सेठी का बांदीकुई में ही स्थाई निवास है। १९७३ में १५ जुलाई को बड़ियाल कलां,जिला दौसा (राजस्थान) में जन्मे नवल सेठी की शैक्षिक योग्यता एम.ए.(संस्कृत,हिंदी),एम.फिल.,पीएच-डी.,साहित्याचार्य, शिक्षा शास्त्री और बीजेएमसी है। शोध निदेशक डॉ.सेठी लगभग ५० राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में विभिन्न विषयों पर शोध-पत्र वाचन कर चुके हैं,तो कई शोध पत्रों का अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशन हुआ है। पाठ्यक्रमों पर आधारित लगभग १५ से अधिक पुस्तक प्रकाशित हैं। आपकी कविताएं विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हिंदी और संस्कृत भाषा का ज्ञान रखने वाले राजस्थानवासी डॉ. सेठी सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत कई सामाजिक संगठनों से जुड़ाव रखे हुए हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत तथा आलेख है। आपकी विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में शोध-पत्र का वाचन है। लेखनी का उद्देश्य-स्वान्तः सुखाय है। मुंशी प्रेमचंद इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक हैं तो प्रेरणा पुंज-स्वामी विवेकानंद जी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
‘गर्व हमें है अपने ऊपर,
हम हिन्द के वासी हैं।
जाति धर्म चाहे कोई हो,
हम सब हिंदी भाषी हैं॥’