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मन ठहरा, मन बहता

डॉ.एन.के. सेठी
बांदीकुई (राजस्थान)

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मन ठहरे जाता कभी, बहे कभी ये जात।
मनवा बड़ा विचित्र है, कभी देत आघात॥

मन की गति भी तीव्र है, किसके बस की बात।
स्वामी इन्द्रिय का कहें, उनमे ही मिल जात॥

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
मन ही सबका शत्रु है, मन ही सबका मीत॥

मन मारे मरता नहीं, मन होता बलवान।
वश में मन की शक्ति के, होता सकल जहान॥

मनवा है चंचल बहुत, गति तीव्र अति होय।
करता जो वश में इसे, होत सूरमा कोय॥

इस दुनिया में जो मनुज, करता मन अनुसार।
चलता है विपरीत वह, पाता कष्ट अपार॥

मन तो केवल एक है, इसके रूप अनेक।
मन लोभी मन लालची, काम न करता नेक॥

मन चञ्चल अरु तेज है, इसकी शक्ति अपार।
ये वश में करता सभी, इसके वश संसार॥

मन को वश में कीजिए, मनवा है बलवान।
इसके मते अनेक है, कहते वेद पुरान॥

मन रूपी गजराज को, रोके अंकुश ज्ञान।
विषय वासना दूर हो, इसे सफलता जान॥

परिचय-पेशे से अर्द्ध सरकारी महाविद्यालय में प्राचार्य (बांदीकुई,दौसा) डॉ.एन.के. सेठी का बांदीकुई में ही स्थाई निवास है। १९७३ में १५ जुलाई को बड़ियाल कलां,जिला दौसा (राजस्थान) में जन्मे नवल सेठी की शैक्षिक योग्यता एम.ए.(संस्कृत,हिंदी),एम.फिल.,पीएच-डी.,साहित्याचार्य, शिक्षा शास्त्री और बीजेएमसी है। शोध निदेशक डॉ.सेठी लगभग ५० राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में विभिन्न विषयों पर शोध-पत्र वाचन कर चुके हैं,तो कई शोध पत्रों का अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशन हुआ है। पाठ्यक्रमों पर आधारित लगभग १५ से अधिक पुस्तक प्रकाशित हैं। आपकी कविताएं विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हिंदी और संस्कृत भाषा का ज्ञान रखने वाले राजस्थानवासी डॉ. सेठी सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत कई सामाजिक संगठनों से जुड़ाव रखे हुए हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत तथा आलेख है। आपकी विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में शोध-पत्र का वाचन है। लेखनी का उद्देश्य-स्वान्तः सुखाय है। मुंशी प्रेमचंद इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक हैं तो प्रेरणा पुंज-स्वामी विवेकानंद जी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
‘गर्व हमें है अपने ऊपर,
हम हिन्द के वासी हैं।
जाति धर्म चाहे कोई हो,
हम सब हिंदी भाषी हैं॥’

 

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