डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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हृदय-पटल तू खोल प्रिय,
मन-मौसम बड़ा सुहाना है
उजड़ चुके हैं जो ख्वाब,
आज मुझे सजाना है।
अब चाहे तुम, जैसे रंग लो,
अपने दामन में भर लो
रोम-रोम पुलकित हो जाए,
प्रेम सुधा रस इतनी भर दो
अरमानों की प्यास लिए,
आश मधुर-मिलन की लाई
झंकृत कर उर-तार प्रिय,
वीणा बनकर मैं आई।
एक मीठी-सी उलझन है,
बता मेरा है कौन तू
खुशबू जैसे बस गए हो,
दिल से जाता नहीं क्यूँ
हृदय-पाश में ऐसे बांध,
जैसे लता तरु से लिपटे।
दूर क्षितिज में जा गगन,
आ धरा पर जैसे सिमटे॥