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मन भी शांत, तन भी

संदीप धीमान 
चमोली (उत्तराखंड)
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मन भी शांत, तन भी शांत
शांत अब हवाएं भी,
ज़िक्र तभी तक है अपना
हो संग जब फिजाएं भी।

कौन यहां माँ के आँचल में
हर आँचल की दुविधाएं भी,
ओझल आँखें तक रही है
यहां अपनों को वृद्धाएं भी।

समय सबेरा कहां यहां
संग समय नहीं फिजाएं भी,
ढलते सूरज प्रणाम नहीं
दिन-भोर यहां अफवाहें भी।

बैठें होंगे कब संग जाने
ले फ़ुरसत संग भावनाएं भी,
औपचारिकता का दौर यहां
मात्र जनने को माताएं भी।

प्रेम किया नौ माह ज्यादा,
संग जननी की गाथाएं भी।
युवा अवस्था ऐसी अंधी,
यहां मतलब को बाधाएं भी॥

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