सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश)
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आ गये आप मेरी खुशी के लिए।
और क्या चाहिये ज़िन्दगी के लिए।
देखिए आप नज़रें उठाकर ज़रा,
घर सजाया है ये आप ही के लिये।
आपके हुस्न के गर हैं चर्चे तो क्या,
हम भी मशहूर हैं आशिकी के लिये।
दिलभी शम्आ़ का उस दम पिघलने लगा,
आये परवाने जब ख़ुदकुशी के लिए।
क़त्ल करते हैं तिरछी निगाहों से जो,
वो ही मशहूर हैं सादगी के लिए।
जामो मीना की कोई ज़रूरत नहीं,
अश्क काफी हैं ये तिश्नगी के लिये।
आप मेरे तसव्वुर में आते रहो,
ये ज़रूरी है बस शायरी के लिये।
चैन मिलता है अपने ही घर में ‘फ़राज़’,
घर ज़रुरी है हर आदमी के लिये॥