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विरहाकुल गोपियाँ

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)
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घन श्याम अजिर में बरस रहे, सखि री! घनश्याम नहीं आए।
अम्बर में शम्बर गरज रहे, चपला चमके जी घबराए॥

दूरी को सहना है मुश्किल,खो गए कहाँ प्रिय कन्हाई,
मौसम पावस का आ पहुँचा,रुत है मादक पर नहिं भाई।
मेघों का नर्तन है नभ में,मन भी लेता है अँगड़ाई,
पर विरह आज रिपु बनकर के,करता है दिल की रुसवाई।
पुरवा आकर के सता रही,हर पल राधा को भरमाए,
अम्बर में शम्बर गरज रहे,चपला चमके जी घबराए…॥

आहें निकलें नित अंतर से,नित विरह सताता है बढ़कर,
बंशीधर का अलबेलापन,नव विश्व सजाता है बढ़कर।
यमुना का तट,वह रास-रंग,यादों में आता है बढ़कर,
राधा का दर्द कौन जाने,दिल में भर जाता है बढ़कर।
हियकर तो हिय में सदा रहे,मुश्किल है दूर चला जाए,
अम्बर में शम्बर गरज रहे,चपला चमके जी घबराए…॥

गोकुल में पसरा सूनापन,चहुँओर दिख रहा है मातम,
हर दिल में पीड़ा है गहरी,कान्हा की दूरी बनी ज़ुलम।
अवसादों के नग़मे गूँजे,बढ़ते जाते हैं रोज़ वहम,
मिलन-चाह की चाहत बिफरी,कौन घटायेगा अब ग़म।
हर गोपी का सपना टूटा,अब दिल को कैसे बहलाए,
अम्बर में शम्बर गरज रहे,चपला चमके जी घबराए…॥

तुम कहाँ गए हो कन्हाई,तुम बिन मुझको तो रोना है,
रातें आँखों में हैं कटतीं,कहने को ही बस सोना है।
अब विरहा की मैं आग,जलूँ,मुझको दर्दों को बोना है,
सुनते हैं श्याम अरज किसकी,जो होना है वो होना है।
जीवन में आज उदासी है,राधा तो रो-रो बतलाए,
अम्बर में शम्बर गरज रहे,चपला चमके जी घबराए…॥

राधा कहतीं सुन लो सखियाँ,बिन श्याम सभी कुछ सूना है,
मेरा ग़म बढ़ता ही जाता,दिल का दु:ख तो अब दूना है।
बंसुरिया मुझे चिढ़ाती अब, मुश्किल उसको अब छूना है,
बरसातों का मौसम बिरथा,बदरंग हुआ सब चूना है।
अब तो दिल भी सुनसान हुआ,पानी आँखों में भर आए,
अम्बर में शम्बर गरज रहे,चपला चमके जी घबराए…॥

परिचय–प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।

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