पटना (बिहार)
अखिल भारतीय अधिवक्ता कल्याण समिति के महाधिवेशन के विशिष्ट अतिथि वैश्विक हिंदी सम्मेलन के निदेशक डॉ. एम.एल. गुप्ता, अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन के अध्यक्ष हरपाल सिंह राणा एवं इटावा हिंदी सेवा निधि के महासचिव एवं इलाहबाद उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता सहित अनेक जनभाषा में न्याय के समर्थक एवं इस विषय पर संघर्षरत विख्यात अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद विशेष रूप से उपस्थित रहे। इस अवसर पर डॉ. एम. एल. गुप्ता ने कहा कि आजादी के ७८ वर्ष बाद भी उच्तत्तम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों की भाषा अंग्रेजी है, जो गुलामी का प्रतीक है।
कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित समिति के वार्षिक अधिवेशन में उन्होंने प्रश्न उठाया कि संविधान नागरिकों के लिए बना है या नागरिक संविधान के लिए हैं ? यदि संविधान जनता के लिए है, संविधान के ऐसे प्रावधान बदले जाने चाहिए जो जनहित के प्रतिकूल हैं। इसलिए संविधान के अनुच्छेद-३४८ को बदला जाना चाहिए और उच्च व उच्चतम न्यायालयों में संविधान के ही अनुच्छेद-३५० के आलोक में संघ और संबंधित राज्य की भाषा में न्याय के प्रावधान किए जाने चाहिए।
अधिवेशन में यह बात भी उठी कि हमारा देश भारत आजाद है, लेकिन भारत संघ और राज्यों की भाषाएँ आज भी गुलाम है। आज भी उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों की न्यायिक कार्यवाहियों में देशवासियों को अपने देश की भाषाओं में अपनी व्यथा लिखने-पढ़ने-बोलने की स्वतंत्रता नहीं है।
अधिवेशन में अधिवक्ता इन्द्रदेव प्रसाद (जो उच्त्तचम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायिक कार्यवाहियों में देशवासियों को दिलवाने की लड़ाई लड़ रहे हैं) के नाम और संघर्ष का उल्लेख करने पर उपस्थित अधिवक्ताओं, पीड़ित पक्षकारों, न्यायाधीशों ने ताली बजाकर उनका अभिनंदन किया।इतना ही नहीं, महाधिवेशन का प्रतिवेदन पढ़ने के लिए उन्हीं को आमंत्रित किया गया, जिसकी मांग कण्डिका-३ उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों की भाषा के ही सम्बंध में है।
समिति के अध्यक्ष अधि. धर्मनाथ प्रसाद यादव ने अध्यक्षता की। मुख्य अतिथि उड़ीसा अच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह रहे। संयोजक अधिवक्ता रणविजय सिंह रहे। अन्य अतिथियों में अधिवक्ता आदित्य प्रसाद, डॉ. आदेश सी. अग्रवाल, अनिल बसोया, डी.एन. मिश्र आदि रहे।
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुम्बई)
