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महिलाएँ और जघन्य अपराध-बेहद चिंताजनक

पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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भारतीय समाज में विवाह को सात जन्मों का पवित्र बंधन कहा जाता है, जहाँ पति-पत्नी एक-दूसरे के साथी, सहयोगी और संबल होते हैं, परंतु विगत कुछ समय से जो घटनाएं सामने आ रही हैं, वह मन को बहुत व्यथित करती हैं। वह इस पवित्र रिश्ते की मर्यादा को तार-तार करती प्रतीत होती हैं। कई खबरें ऐसी हैं, जिसमें पत्नी ने पति की हत्या कर दी-कभी किसी प्रेमी के लिए तो कभी स्वयं को पति से आजाद करने के लिए…। यह प्रवृत्ति ना केवल सामाजिक-मानसिक दृष्टिकोण से अत्यंत चिंताजनक है, वरन् हमारी पारिवारिक और समाज की नैतिक व्यवस्था के गिरते स्तर का भी संकेत है ।
आजकल समाचार पत्रों और डिजिटल मीडिया पर आए-दिन पति की हत्या की खबरें देखने को मिलती हैं। कभी किसी महिला ने प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या कर दी, तो कभी संपत्ति विवाद में, तो कभी वर्षों के उत्पीड़न से परेशान होकर यह कदम उठाया। इस तरह की बढ़ती घटनाओं की संख्या यह दर्शाती है कि यह कोई अपवाद नहीं है, वरन् समाज में बढ़ती खतरनाक प्रवृत्ति है, जो भारतीय संस्कृति को पतन के गर्त की ओर ले जाती दिखाई पड़ रही है।
हमारे देश भारत में महिलाएं आज भी शादी के बाद ससुराल वालों द्वारा शारीरिक-मानसिक रूप से प्रताड़ना का शिकार होती हैं। जब यह अत्याचार लंबे समय तक चलता ही जाता है और महिला को कहीं से भी राहत की कोई उम्मीद नहीं दिखाई देती, तो भावनात्मक रूप से टूट कर कभी निराशा के पलों में आत्महत्या कर लेती है।अब उसी क्रोध और बदले की आग में जलती हुई वह पति की हत्या करने पर उतारू हो जाती है। जैसे- कोई महिला पति द्वारा वर्षों तक मारपीट सहती रही और अंततः आत्मरक्षा या फिर प्रतिशोध के आवेश में वह पति की हत्या कर बैठती है।
आजकल कार्यशील महिलाएँ घर से बाहर रह कर अपने कार्यक्षेत्र में अनेक लोगों के संपर्क में आती हैं। कई बार जीवन में ऐसा मोड़ आता है, जब वे किसी पुरुष को प्यार करने लगती हैं। ऐसी स्थिति में जब पति या कोई अन्य उनके प्रेम के बीच में बाधक बनने लगता है, तो महिला उस बाधा को समाप्त करने के लिए किसी हद तक भी जा सकती है, जिसमें हत्या भी शामिल है। यह प्रवृत्ति विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में बढ़ रही है। जैसा नीले ड्रम वाली मुस्कान और सोनम द्वारा की गई हत्या है।
यहाँ पर महिलाओं की स्वतंत्रता की अवधारणा को गलत तरह से परिभाषित किया जा रहा है, जबकि मानसिक असंतुलन एवं अवसाद निरंतर उपेक्षा, अपमान, अकेलापन और समाज के भेदभावपूर्ण व्यवहार के कारण मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। कई बार महिलाएँ अवसाद की शिकार बन जाती हैं और मानसिक रूप से अस्थिर होने के कारण सही-गलत का निर्णय लेने में असमर्थ हो जाती हैं। ऐसी अवस्था में वह यथार्थ और अपराध के अंतर को नहीं समझ पातीं एवं हत्या जैसे क्रूर कृत्य कर डालती हैं।
अवसाद एक मूक आपदा बन चुकी है, जिसके लिए समय रहते समझना और इससे निबटने के उपायों पर विचार करना समाज के लिए आवश्यक हो गया है।
ऐसे मामले भी देखने को मिलते हैं, जिनमें पैतृक संपत्ति या पति की संपत्ति, बीमा राशि आदि के पैसे के लिए हत्या की गई। ऐसे विवाद में आपराधिक पृष्ठभूमि या मानसिकता के कारण सुपारी देकर या दोस्त और प्रेमी के साथ मिल कर षड़यंत्र या साजिश द्वारा पति की हत्या करके रास्ते से हटा दिया जाता है, जैसे सोनम द्वारा मेघालय में ले जाकर पति राजा की हत्या कर दी गई। यह योजनाबद्ध तरीके से शातिर अपराधी की सहायता से कराई जाती है।
भारत में महिलाओं को अक्सर कानून की दृष्टि से कमजोर पक्ष माना जाता है। कई बार महिलाएँ इस स्थिति का दुरुपयोग भी करती हैं। उन्हें यह विश्वास होता है, कि कानून इन्हें कठोर दंड नहीं देगा और समाज उनके पक्ष में साथ खड़ा रहेगा। यह सोच उन्हें अपराध की दिशा में प्रेरित करती है। दहेज कानून व घरेलू हिंसा अधिनियम जैसी व्यवस्थाएं अक्सर झूठे मुकदमे या असल अपराधों को ढकने के लिए प्रयोग की जाती हैं।
आजकल टी.वी. धारावाहिकों और फिल्मों के साथ वेब सीरिज में भी महिलाओं के चरित्र को प्रतिशोध की आग में झुलसती हुई महिला की तरह दिखाया जा रहा है, जो अपने ऊपर होने वाले अत्याचार का अंत अपनी शर्तों पर करती है, और बदला लेने के लिए हत्या करने से भी नहीं डरती। यह क्रूर छवि कुछ कमजोर मानसिकता वाली महिलाओं को प्रभावित करती है और वह वास्तविक जीवन में ऐसा कार्य दोहराने में जरा भी नहीं हिचकिचाती। यही कारण है कि दहेज और घरेलू हिंसा के ज्यादातर मामले झूठे साबित हो जाते हैं।
पति की हत्या की घटनाएँ यह दर्शाती हैं कि अब केवल पुरुष ही नहीं, महिलाएँ भी हिंसक और अपराधी प्रवृत्ति की ओर बढ़ रही हैं। यह ना केवल नारी सशक्तीकरण की मूल भावना के विरुद्ध है, वरन् परिवार, बच्चों और समाज के लिए भी भयावह खतरे का संकेत है। जब स्त्री अपराध करती है तो मूल रूप से पूरा परिवार और सामाजिक ताना-बाना प्रभावित होता है।
पति-पत्नी के बीच आपस में मतभेद स्वाभाविक है, परंतु संवादहीनता रिश्तों के बीच कड़वाहट को बढ़ा देती है। इसलिए विवाहपूर्व एवं विवाहोपरांत विशेषज्ञ से परामर्श की सुविधा अनिवार्य होनी चाहिए।
इसी तरह अवसाद, अकेलापन और मानसिक अस्थिरता के मामलों को परिवार और समाज गंभीरता से ले तथा महिलाओं को समाज और परिवार से भावनात्मक सहयोग मिले। इसी प्रकार कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए न्यायपालिका को निष्पक्ष रह कर निर्णय देना होगा। महिला और पुरुष के नजरिए से नहीं, वरन् साक्ष्य के आधार पर फैसला दिया जाए।
नैतिक शिक्षा और पारिवारिक मूल्यों का पुनर्प्रतिष्ठापन आज फिर आवश्यक है। बच्चों को बचपन से ही बड़ों के सम्मान, धैर्य, सहनशीलता और निष्ठा की शिक्षा मिले। परिवार में महिला और पुरुष दोनों को समान रूप से सम्मान दिया जाए।
महिलाओं द्वारा पति की हत्या करना समाज की उस गहराई को दर्शाता है, जहाँ रिश्तों का आपसी विश्वास, संवाद, मर्यादा नष्ट हो चुकी है। यह सिर्फ एक व्यक्ति द्वारा किया गया अपराध नहीं है, वरन् हमारे देश की सामाजिक संरचना का विघटन है। यदि समय रहते हम नहीं चेते तो स्त्री-पुरुष दोनों ही अपराधों के दलदल में धँसते चले जाएँगें, जहाँ से बाहर निकलना असंभव नहीं, तो मुश्किल तो हो ही जाने वाला है।