बोधन राम निषाद ‘राज’
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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माता रानी तुम ही मेरा,
बेड़ा पार लगाना।
कब से बैठा हूँ दर पे माँ,
थोड़ा प्यार बहाना।।
मैं तो खाया हूँ माँ अम्बे,
बहुत जहां में ठोकर।
अब मैं सदा रहूँगा तेरे,
दर पे सेवक होकर॥
अपने ही चरणों में माता,
रखना भूल न जाना।
माता रानी तुम ही मेरा…
भक्ति नहीं औ शक्ति नहीं माँ,
कुछ भी यहाँ न जानूँ।
मानूँ तो मैं अपना तुमको,
दिल से ही पहचानूँ॥
कभी भटक जाऊँ अम्बे माँ,
तुम ही राह दिखाना।
माता रानी तुम ही मेरा…
आओ माता हे जगदम्बे,
करके शेर सवारी।
मेरे आँगन में पग धरना,
चंडी खप्पर धारी॥
दीन-हीन बालक मैं माता,
मेरी लाज बचाना।
माता रानी तुम ही मेरा…॥