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मातृभाषा को महत्व देकर ऐतिहासिक निर्णय लिया

डॉ. एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’
मुम्बई(महाराष्ट्र)
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मध्यप्रदेश में देश में पहली बार हिंदी में चिकित्सा शिक्षा के पाठ्यक्रम का शुभारंभ किया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नई शिक्षा नीति में प्राथमिक, तकनीकी और चिकित्सा शिक्षा में मातृभाषा को महत्व देकर बहुत बड़ा ऐतिहासिक निर्णय लिया है।
प्रधानमंत्री ने सभी क्षेत्रीय भाषाओं में चिकित्सा और अभियान्त्रिकि की शिक्षा उपलब्ध कराने का आह्वान किया था और मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने सबसे पहले इस इच्छा की पूर्ति की है।
आज श्री मोदी के नेतृत्व में नई शिक्षा नीति के माध्यम से हमारी भाषाओं को महत्व देने की शुरूआत हुई है। जेईई, नीट और विश्व विद्यालय अनुदान आयोग की परीक्षाओं को देश की १२ भाषाओं में आयोजित किया जा रहा है। आज से हमारे बच्चों को अपनी मातृभाषा में तकनीकी और चिकित्सा शिक्षा तो मिलेगी ही, इसके साथ ही वे आगे अनुसंधान भी अपनी भाषा में कर सकेंगे।
२१वीं सदी में कुछ ताकतों ने ‘ब्रेन ड्रेन’ की तरकीब अपनाई और आज प्रधानमंत्री ‘ब्रेन ड्रेन’ की तरकीब को ‘ब्रेन गेन’ में बदल रहे हैं। विद्यार्थियों को भाषाई हीन भावना से बाहर आना चाहिए, क्योंकि आज देश में नरेन्द्र मोदी की सरकार है और आप अपनी भाषा में अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री ने वैश्विक मंचों पर अपना भाषण राजभाषा हिंदी में देकर पूरी दुनिया को एक संदेश दिया है। जब श्री मोदी वैश्विक मंच पर हिंदी में बोलते हैं तो देशभर के युवाओं के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने तकनीकी और चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में कई परिवर्तन किए हैं। २०१४ में चिकित्सा महाविद्यालय ३८७ थे, जो बढ़कर ५९६ हो गए हैं। एमबीबीएस सीटें ५१ हज़ार से बढ़ाकर ७९ हज़ार की गई। २०१४ में देश में ७२३ विश्वविद्यालय थे, जिन्हें बढ़ाकर १०४३ करने का काम केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने किया है। मोदी जी द्वारा लाई गई नई शिक्षा नीति के माध्यम से हमारी भाषाओं के गौरव को प्रस्थापित करने और इनमें ही तकनीकी, चिकित्सा और कानून की पढ़ाई की व्यवस्था पूरे देश में करने से देश में क्षमता की क्रांति आने वाली है।
भाषा और बौद्धिक क्षमता का आपस में कोई संबंध नहीं है, भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम है, जबकि बौद्धिक क्षमता बच्चे को ईश्वर ने दी है जिसे शिक्षा से निखारा जा सकता है। आज की इस शुरूआत से अनुसंधान के क्षेत्र में भारत विश्व में बहुत आगे जाएगा और हमारे बच्चों की बौद्धिक क्षमता का भी विश्व को परिचय होगा।

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