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राह ताकती साजन की

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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मैं बन के रह गई नई नवेली दुल्हन, पिया चले गए हैं परदेस,
पैरों की महावर, हाथों की मेहन्दी लेकर बालम गए परदेस।

‘देवन्ती’ कैसे करेगी सिंगार, किसके लिए करूँ मैं सिंगार,
हर साज सिंगार पर नारी के, पिया का होता है अधिकार।

कानों की झूमती बाली, होंठों की लाली, राह ताकती साजन की,
सूनी सेज,महल है सूनी, फुलवारी हुई है सूनी- सूनी आँगन की।

बसन्ती हवाओं से पूछती है, हमारी हरी केसरिया चुनरिया,
दिल का दर्द बताया चाँदनी से, अब हो गई सखी मैं बावरिया।

अकेली हूँ पिया बिन, अब कहो सखी मैं कैसे करुँ सिंगार,
ब्याहता दुल्हन मैं बनी रही, नहीं मिला है साजन का प्यार।

सखी छूट गया बाबुल का आँगन, पिया बिना घर लागे सूना-सूना,
सोलह सिंगार सभी बहना करती हैं, मेरे भाग्य में है लिखा रोना।

संदेशा लाने-देने वाले,भैया कागा, खत लेके जाओ परदेस,
कैसे करुँ सिंगार, जाकर दे देना बेदर्दी सजना को संदेश।

कहना परदेसी बालम से, सुहागन होकर भी, बनी हूँ अभागन,
सूनी माँग मेरी, भरा है सिंगार, लोग कहते हैं अभागन दुल्हन॥

परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |


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