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मातृभाषा हिन्दी के लिए संघर्ष की महती आवश्यकता

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस विशेष….

जब बात मातृभाषा की होती है तो माँ एवं मातृभूमि की बात होनी ही है,क्योंकि माँ से ही सबका कहीं न कहीं जुड़ाव है,और सदा ही रहेगा। हमें अपनी संस्कृति और सभ्यता को बचाना है तो मातृभाषा हिन्दी को बचाना होगा और बढ़ाना भी होगा। उस हर मातृभाषा को सहेजना होगा,जो संस्कार देती है, मनुष्य की मनुष्यता को पल्लवित करती है।
सभी को पता है कि,इसी मातृभाषा को सुरक्षित करने की दिशा में प्रतिवर्ष २१ फरवरी को भाषाई-सांस्कृतिक विविधता तथा बहुभाषावाद की जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए ‘अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ मनाया जाता है। यदि भारत के संदर्भ में हम भाषा,भाषाई एकता और मातृभाषा की बात करें तो विश्व में ७ हजार से अधिक भाषाएँ हैं,जिसमें से सिर्फ भारत में ही २२ आधिकारिक मान्यता प्राप्त भाषा हैं,जबकि १६३५ मातृभाषाएँ और २३४ पहचान योग्य मातृभाषाएँ हैं।
यूनेस्को द्वारा १९९९ में की गई घोषणा के अनुरूप इसे विश्व द्वारा वर्ष २००० से मनाया जाने लगा। खास बात यह है कि,यह दिन बांग्लादेश द्वारा अपनी मातृभाषा बांग्ला की रक्षा के लिए किए गए लंबे संघर्ष की याद दिलाता है। आज भारत में भी मातृभाषा हिन्दी के लिए ऐसे ही संघर्ष की महती आवश्यकता है।
हमें यह समझना होगा कि,विविध संस्कृति और बौद्धिक विरासत की रक्षा की तरह ही हिन्दी मातृभाषा सहित अन्य का संरक्षण करते हुए उन्हें बढ़ावा देना है। वैश्वीकरण के इस दौर में बेहतर रोज़गार के अवसरों के लिए सब विदेशी भाषा सीखने की होड़ में शामिल हैं,या विवशता भी है,तो भी माँ की भाषा को लुप्त होने से बचाना होगा। जैसे हम माँ की चिंता करते हैं,वैसे ही मातृभाषा के लुप्त होने की फिक्र करनी होगी। जानकर आश्चर्य होगा कि,दुनिया में बोली जाने वाली अनुमानित ६ हजार भाषाओं में से लगभग ४३ फीसदी लुप्तप्राय: हैं।
भारत के हिसाब से भाषा और मातृभाषा का आंकलन किया जाए तो हाल ही में घोषित राष्ट्रीय शिक्षा नीति-२०२० में मातृभाषाओं के विकास पर अधिकतम ध्यान दिया गया है। सरकार की इस नीति में सुझाव दिया गया है कि जहाँ तक संभव हो शिक्षा का माध्यम कम-से-कम कक्षा ५ तक (अधिमानतः८वीं कक्षा तक और उससे आगे) मातृभाषा या भाषाया क्षेत्रीय भाषा होनी चाहिए, क्योंकि मातृभाषा में शिक्षा दिए जाने से यह पसंद के विषय और भाषा को सशक्त बनाने में मदद करेगा।
कुछ समय पहले उपराष्ट्रपति ने भी बड़ी ही गंभीरता से स्थानीय भाषाओं और हिन्दी के उपयोग के लिए प्रशासन,अदालती कार्यवाही,उच्च और तकनीकी शिक्षा आदि अन्य क्षेत्रों पर प्रकाश डाला है। इस दिशा में हिन्दी भाषी राज्यों को पहल करने के लिए केरल सरकार का अनुसरण करना चाहिए। इस राज्य ने जनजातिय बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाने के लिए ‘नमथ बसई’ कार्यक्रम चलाया है, जो बहुत फायदेमंद साबित हुआ है। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा इसके तहत अनुकरणीय कार्य किया जा रहा है। प्रदेश के अटल बिहारी हिंदी विवि (भोपाल) द्वारा चिकित्सा व अभियान्त्रिकी जैसे विषयों का पाठ्यक्रम हिंदी में किया जा रहा है। मातृभाषा की सुरक्षा के लिए ऐसे ही महती उपाय अमल में लाने होंगे।
अनुच्छेद १२० के अनुसार संसद की कार्यवाहियों में हिंदी या अंग्रेज़ी का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन सदस्यों को अपनी मातृभाषा में स्वयं को व्यक्त करने का अधिकार है तो फिर अनुच्छेद ३५० ए के अनुसार (प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधा) देश के प्रत्येक राज्य और प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी ऐसा प्रयास क्यों नहीं करते कि, बच्चों को शिक्षा के प्राथमिक चरण में मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने के लिए पर्याप्त सुविधाएँ हों।
चिंता आज यह भी है कि,आठवीं अनुसूची में शामिल २२ भाषाओं(हिंदी,असमिया,बांग्ला, गुजराती आदि)के आगे कुछ और आने में लगी हैं, भले ही फिर उनके लिखने,पढ़ने और बोलने वालों की संख्या बहुत कम हो। ऐसे में हिन्दी और मातृभाषा को बचाना और बढ़ाना बहुत अनिवार्य है,क्योंकि ‘शिक्षा का अधिकार’ अधिनियम(२००९) भी यही कहता है कि,’शिक्षा का माध्यम,जहाँ तक व्यावहारिक हो बच्चे की मातृभाषा ही होनी चाहिए ।’
कुल मिलाकर कहना गलत नहीं होगा कि भाषा, मातृभाषा और हिंदी को संरक्षित करने के लिए सरकार तथा हर भारतीय को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी,तभी वैश्विक स्तर पर भी लोकप्रिय हिंदी शीश का तिलक बनी रहेगी।

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