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मानव को मानव बनाने की कार्यशाला है कविता-प्रो. खरे

परिचर्चा….

मंडला(मप्र)।

कविता मानव को मानव बनाने की कार्यशाला का नाम है। कविता मनोरंजन का विषय है,तो चिंतन प्रदान करने का जरिया भी है। वास्तव में कविता मनुष्यता को जाग्रत करती है,बुराईयों के विरुद्ध एक संघर्ष छेड़ती है।
साहित्यकार व मुख्य अतिथि प्रो.(डॉ.) शरद नारायण खरे (मप्र) ने यह बात कही। अवसर था भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में आनलाइन कवि सम्मेलन का। विषय प्रवर्तन करते हुए संस्था के अध्यक्ष एवं संयोजक सिद्धेश्वर ने कहा कि,कविता की उपयोगिता को शब्दों की परिधि में कैद नहीं किया जा सकता। कविता अपने-आप में जितनी व्यापक है,उतनी ही वह हमारे लिए,समाज के लिए,भूमंडल के विस्तार के लिए,ज्ञान-विज्ञान के लिए,यहां तक कि पाठकों के लिए भी सागर की गहराई और सागर के विस्तार से भी अधिक महत्वपूर्ण है।
सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए डॉ. बी. एल. प्रवीण ने कहा कि,सवाल कवितापन पर आकर टिक जाता है। औसतन कुछ ही कविताएं होती हैं जो पाठक को अगली पंक्ति पढ़ने के लिए अभिप्रेरित करती हैं। अधिकतर कविताएं स्वांत: सुखाय के तर्ज पर ही लिखी जा रही हैं। सचमुच में कविता का इतिहास देखा जाए तो हमें निराशा होती है,क्योंकि ज्यादातर बिना किसी कसौटी के प्रस्तुत हो रही हैं। कविता को कविता में जीकर कविता की तरह लिखना पड़ेगा।
संगोष्ठी की विशिष्ट अतिथि आराधना प्रसाद ने भी उपरोक्त विषय पर चर्चा की। इस विषय पर ऋचा वर्मा,संतोष मालवीय, गजानन पांडेय और रचना ने भी सारगर्भित विचार प्रस्तुत किए। सम्मेलन में एक दर्जन से अधिक रचनाकारों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। डॉ. खरे ने रोदन करती आज दिशाएं,मौसम पर पहरे हैं /अपनों ने जो सौंपे हैं वो घाव बहुत गहरे हैं,संतोष मालवीय ने गरीबों की अब उलहाना बन गई है जिंदगी,अमीरों का देखो सिरहाना बन गई है जिंदगी एवं अन्य ने भी रचना प्रस्तुति की। इन कविताओं ने ढेर सारे श्रोताओं का मन मुग्ध कर दिया।