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मुझको सज़ा ये कैसी ?

डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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प्यार करने की मिली मुझको सज़ा ये कैसी ?
ज़ख़्म देकर वो कहें तुमसे ख़ता ये कैसी।

उनसे चाहा था चलो इश्क़ की मंज़िल पा लें,
मुस्कुराते ही रहे उनकी रज़ा ये कैसी।

अब न सपने हैं, न उम्मीद न चाहत कोई,
प्यार में लुट गए फिर मुझको जज़ा ये कैसी।

मुझको रुसवा किया सड़कों पे मगर अब तुमने,
मेरे हक में जो किया तुमने, दुआ ये कैसी।

जो भी चाहा था उसे रूह से पुकारा हमने,
फिर भी किस्मत ने लिखी ऐसी जफा ये कैसी।

इश्क़ में हार के भी सर न झुकाया ‘शाहीन’,
आई ज़ख्मों को सुखाने की हवा ये कैसी॥