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मुफ़्तखोरी का चस्का ‘दमा’

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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मुफ़्तखोरी और राष्ट्र का विकास…

सब्सिडी के झांसों में, होता भारत का इंसान निकम्मा है,
मुफ़्तखोरी का चस्का, हुआ अब भारत को जैसे दमा है।

विकास भारत का धीमा है, करते सब ऐसी ही बातें हैं,
अब तो पचहत्तर का हो गया, फिर भी क्यों मुश्किलातें हैं ?

मुफ़्तखोरी के आदी बाशिंदे, राष्ट्र विकास फिर कैसे होना है ?,
समृद्ध आ रहे हैं आईआरडीपी में, यही तो सारा रोना है।

नेता, अधिकारी और कर्मचारी, मुफ़्त में सब खाना चाहते हैं,
जितनी लेते हैं पगार महीने की, उससे आधा भी न कमाते हैं।

वेतन पूरा-काम अधूरा, फिर राष्ट्र विकास का रोना रोते हैं,
जनता को चाहिए ‘सब्सिडी’ पर सब्सिडी, सारे दावे थोथे हैं।

जिसको देखो वह दिनभर, मुफ़्त की कमाई ही गिनता है,
सबको पड़ी है अपनी-अपनी, राष्ट्र की किसको चिन्ता है ?

बड़े-बड़े वादे, बड़े-बड़े इरादे, सब कहने-सुनने की बातें हैं।
विकास है पागल, झुग्गियों से महलों तक मुफ़्त ही खाते हैं॥