राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड)
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टूटी हुई कठिन राह पर
चलने को हुआ मजबूर,
ना कोई सहायक खड़ा
व्यथित हृदय है भरपूर।
राह कठिन है सबकी पर
तिनके का सहारा जरूर,
मेरा जरा तुम हाल पूछ लो
हूँ अभी बड़ा ही मजबूर।
चलना था जिस राह पर
खड़ा ‘कोरोना’ बन दीवार,
छीन लिया यह रोजगार
मुसीबत में घर-परिवार।
चाहता था चलना पाँवों पर
चलाना बच्चों को राहों पर,
अब हाथ से हाथ छूट गया
लगता मन मेरा टूट गया।
रहता खड़ा मैं साथ में जिनके
आज कहाँ नजर वह आते हैं,
देख मुझे दूर से अब तो वह
अपना रास्ता बदल जाते हैं।
चलूँ मैं अब वह है राह क्या
कुछ तो नजर नहीं आता है,
हे ईश्वर तुम ही बताओ आज
राह यदि तुझे कोई पता है।
इसको छोड़ दूसरी राह चलूँ
पर कहाँ दूसरे की है पहचान,
गिरने के बाद यदि फिर गिरूँ
अवश्य निकलेंगे मेरे प्राण।
कोरोना के गहरे संकट से
जीवन में एक सीख मिली,
संकट में दूसरों की आस से
भविष्य का करो लक्ष्य भली।
हे ईश्वर बात मेरी सुन लो,
करता हूँ प्रार्थना बारम्बार।
संकट मिटा राह बना दो,
मुसीबत में घर-परिवार॥
परिचय–साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैL जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैL भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैL साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैL आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैL सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंL लेखन विधा-कविता एवं लेख हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैL पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंL विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।