सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश)
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आपके दिल से दिल क्या मिला हीरिए।
लुत्फ़ जीने में आने लगा हीरिए।
ख़ार भी फूल लगने ‘लगे बाख़ुदा,
हो ‘न जाना कभी आप ‘मुझसे जुदा।
मिलते ही आपसे हो गया यह यक़ीं,
के ख़ुदा है मुह़ब्बत,मुहब्बत ख़ुदा।
आप’के दिल से दिल क्या मिला हीरिए।
लुत्फ़ ‘जीने में आने लगा हीरिए…।
आपकी जब ‘से ह़ासिल मुह़ब्बत ‘हुई,
ज़िन्दगी और ‘भी ख़ूबसूरत हुई।
आपके मरमरी पाँव छू कर सनम,
पुर ख़तर राह भी मिस्ले जन्नत हुई।
आपके’ दिल ‘से दिल क्या मिला हीरिए।
लुत्फ़ ‘जीने में आने लगा हीरिए…।
सर झुकाओ ‘न ऐसे ऐ नाज़ुक ‘परी,
मन ‘के मन्दिर में होने ‘लगी खलबली।
रूठना भी गवारा नहीं आपका,
आपकी हर खुशी अब है मेरी ‘ख़ुशी।
आपके दिल से दिल क्या मिला हीरिए।
लुत्फ़ जीने में आने लगा हीरिए…॥