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यात्रा संस्कृति की

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ 
उदयपुर(राजस्थान)

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ब्रहमा,विष्णु,महेश के आशीर्वाद से हमारी हस्ती है,
वेद,पुराण,गीता,रामायण,महाभारत सरीखी सम्पत्ति है।

आदि अनंत काल से परचम फहराया है भारत वर्ष का,
यह अमर,अजर गाथा यात्रा हमारी,हमारी संस्कृति है।

बड़ों को आदर मान,ॠषि-मुनियों को सदा सम्मान,
वसुधैव कुटुंबकम,जग कल्याण हमारी सदा प्रकृति है।

राम,कृष्ण,महावीर,बुद्ध की यह जन्म व कर्म भूमि,
नानक,तुलसी,मीरा,साधु संतों की व्याप्त भक्ति है।

दुश्मन को भी पाठ पढ़ाते हम प्रेम और शांति का,
पर उसने देखी भी है शौर्य गाथाएं और शक्ति है।

देवी रूप में पूजते हैं हम,जननी, देश और नारियों को,
हमारे दिलों में बसी इन सभी की ममता आकृति है।

प्रकृति से हमारा हमेशा परिवार-सा जुड़ाव रहा है,
जीव,जंतु,पंच- तत्व पूज्य हैं और औषध वनस्पति है।

सोने की चिड़िया,विश्व गुरू बने हैं हम संस्कारों से,
यह यात्रा संस्कृति की है,उन्नति,विकास और तृप्ति है।

भौतिकवाद,पाश्चात्यवाद व भोगवाद से हमें बचना है,
मूल्यों की है संस्कृति हमारी,नहीं यह मौज-मस्ती है।

‘देवेश’ को बहुत गर्व है अपनी इस महान संस्कृति पर,
हमारी हर साँस में,कण-कण में यह रचती बसती है॥

परिचय–संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।

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