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मुस्कुराते बच्चे प्रफुल्लित राष्ट्र की पहचान

राजकुमार जैन ‘राजन’
आकोला (राजस्थान)
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बालक के जन्म के साथ ही अभिभावक अपने बच्चों के लिए ऐसा तिलिस्म बुनने लगते हैं,जिसमें बालक इस तरह गिर जाता है कि चाह कर भी उन स्वप्नों के भार से निजात नहीं पा पाता। अभिभावकों के अधूरे स्वप्नों को पूर्ण करने का दायित्व बच्चों पर गहरा मानसिक और भावनात्मक दबाव बनाता है। नतीजतन जीवन अवसाद पूर्ण हो जाता है,असफलता और पिता के सपनों के टूटने का डर उसे अपने जीवन से बड़ा लगने लगता है और जाने- अनजाने ये परिस्थितियां बच्चों की अबोध हँसी को छीनकर उन्हें समय से पहले ही सयाना बना रही है। विचार इस बात का है कि,भारत सहित पूरे विश्व में बच्चों के अस्तित्व पर तरह तरह के संकट मंडरा रहे हैं। जन्म,पालन-पोषण,शिक्षा,सुरक्षा और अवस्थागत परवशता आदि से जुड़े सैंकड़ों सवाल!

परिवार वह संस्था है,जहां बच्चा जन्म लेता है और वहीं उसे जीवन जीने की चाह और संघर्षों से लड़ने का सम्बल मिलता हैl यदि ऐसा नहीं होता तो वह बालक जो जीवन के पड़ावों से गुजरता हुआ किशोर और फिर युवा बनता है,बिखर जता है। एक स्वस्थ समाज तभी निर्मित होता है,जब नौनिहालों को एक उन्मुक्त एवं उल्लासपूर्ण वातावरण में विकसित होने का मौका हम देंगे,लेकिन हम हैं कि अपने बच्चों पर भी अपनी इच्छाएं थोपने की कोशिश करते हैं। हम चाहते हैं कि उनका विकास हमारी सोच के अनुसार हो। एक तरह से नन्हें पौधों को वृक्ष बनने से हम बोनसाई में तब्दील कर देना चाहते हैं।

दरअसल,हर उस व्यक्ति के मन में बच्चों के लिए एक दायित्व बोध होता है जिसे पता है कि बच्चे ही हमारा भविष्य हैं। यदि वर्तमान किसी भी स्तर पर असंतुलित,विचलित,विपत्तिग्रस्त,शोषित होगा तो भविष्य कैसे सार्थक,सुंदर हो सकेगा। परिवार विद्यालय पर दबाव डालें,विद्यालय प्रशासन पर, प्रशासन सरकार पर और सरकार समाज पर-इससे कुछ नहीं होने वाला हैl लम्बा रास्ता बिना विघ्न पूरा करना है तो हर मोड़ पर रोशनी की पूरी

पक्की व्यवस्था करनी होगी। बच्चों के भविष्य को संवारना हर धर्म,हर महजब,हर विचारधारा का पहला कर्तव्य है। मुस्कुराते बच्चे प्रफुल्लित राष्ट्र की पहचान हैं।

आज बच्चों की रुचियां तेजी से बदल रही हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से बच्चों में जहां एक ओर रिश्तों,नातों के प्रति सोच में यांत्रिकता और संवेदनशीलता का विकास हुआ है,वहीं दूसरी ओर उनकी स्वार्थ साधकता और हिंसा वृति में भी इजाफा हो रहा है। बाल जीवन पर आज सबसे ज्यादा प्रभाव टी.वी.,कम्प्यूटर,मोबाइल,इंटरनेट ने डाला है। अपनी सुलभता व जबरदस्त आकर्षण के कारण वह बच्चों को दिशाहीन बना रहा है। बच्चे निडर और निरंकुश बन रहे हैं। वे असमय जवान हो रहे हैं। वैज्ञानिक अध्ययनों से यह तथ्य प्रमाणित हो चुका है कि आभासी दुनिया बच्चों की संवेदनशीलता और कोमल मस्तिष्क को अन्य माध्यमों से कहीं अधिक प्रभावित करती हैं,अतः वे उसी दुनिया मे खोए रहते हुए अपने परिवेश से प्रायः कट जाते हैं। अगर परिवेश खराब हो तब तो बच्चों के बिगड़ जाने और समाज विरोधी बन जाने का भय भी रहता है। साइबर दुनिया बच्चों से उनका बचपन छीन रही है। यह हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है।

बच्चों या भावी पीढ़ी के चरित्र निर्माण में बाल साहित्य की भूमिका काफी हद तक महत्वपूर्ण रही है। साइबर दुनिया ने बच्चों को पुस्तकों से दूर कर दिया है। शालेय किताबें भी नेट पर पढ़ी जाने लगी हैं। बच्चों को शालेय किताबों से इतर पढ़ने की रुचि विकसित करने के लिए जरूरी है कि अभिभावक भी पढ़ने की रुचि डालें। अगर आपमें किताबें पढ़ने की आदत होगी तो आपके बच्चों में भी यह धीरे-धीरे विकसित होती जाएगी और फिर वो किताबों में ही डूबा दिखाई देगा,जो अभिभावकों के लिए खुशी की बात होगी,क्योंकि किताबें ही ज्ञान वृद्धि की उत्तम स्त्रोत हैं।

हम बच्चों के दिल में किताबों को दोस्त बनाने की प्रेरणा भरें। बच्चों को प्रेम दें। हम मंदिर में जाकर तो बालकृष्ण को माखन मिश्री चढ़ाते हैं और घर पर बच्चे से छोटी-सी गलती भी हो जाए तो चांटा जड़ते देर नहीं लगाते हैं,तो कहाँ गई हमारी वह बालकृष्ण की पूजा ? क्या एक मूर्ति ही आपके लिए भगवत तुल्य है ? जब हम मंदिर में जाकर पंचधातु की मूर्ति को भगवान कह सकते हैं तो आपका अबोध बच्चा क्या भगवान का रूप नहीं है ?

आज पूरे देश की आवश्यकता है कि साहित्य में रुचि पैदा कर बच्चों की नकारात्मक गतिविधियों को रोका जाए,जिससे समय रहते सही संस्कार उनमें पनप सकें। अगर आप चाहतें है कि आपका बच्चा जीवन में सफल हो तो उसकी शिशु अवस्था में ही आपको यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि उसे उसी अवस्था में बाल साहित्य पढ़ने को दिया जाए। कहा जाता है कि अनौपचारिक शिक्षा ही बालक के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास कर सकती है। एक संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास बचपन में पठन-पाठन की रुचि के विकास के साथ-साथ ही होता है। आज अभिभावकों,शिक्षकों,समाजसेवी संस्थाओं को भी राष्ट्र के भावी बच्चों के विकास के लिए प्रवृत्त होना चाहिए। बालक की नैसर्गिक साहित्यिक क्षुधा की पूर्ति हो सके,उसकी सृजनशीलता पनप सके तथा वह अपनी कल्पनाओं को विचारों का रूप देकर अभिव्यक्त कर सके,यही हमारे प्रयास की दिशा होनी चाहिए।

हमें बच्चों को ऐसी पुस्तकें प्रदान करनी चाहिए,जिनमें बच्चों के लिए बच्चों के संसार की बातें हों। उनकी समस्याओं,उनके परिवेश और उनकी महत्वाकांक्षाओं से अभिभावकों,पाठकों को परिचित कराने के साथ ही बच्चों के लिए अच्छी रोचक,मनोरंजक,जानकारी युक्त सामग्री हो। बाल पाठक इन रचनाओं को बार-बार पढ़ना चाहें,याद करें,दोस्तों को सुनाएं। बच्चों को बाल साहित्य जगत से परिचय करवाने का दायित्व हम सबका है।

वर्तमान दौर में वादों और गुटों में बंटे बाल साहित्य की दुनिया में कुछ लोंगो ने स्वयं को बाल साहित्य का खेवनहार मान लिया है। बौद्धिक बहसें जारी हैं,जहां बालक नदारद है। अच्छा बाल साहित्य बच्चों तक पहुंचाने में उनके प्रयास नगण्य हैं। उनमें केवल बाल साहित्य की पुस्तकें लिखने, गोष्ठियों में बालकों पर चिंतन करने,सम्मान लेने और देने से आगे बाल साहित्य की कोई चिंता दिखाई नहीं देती। यह सब कहने का मतलब यह कतई नहीं है कि सब जगह ऐसा ही हो रहा है। नहीं,बहुत लोग व संस्थाएं बाल साहित्य उन्नयन व बाल कल्याण के साथ बाल साहित्य से बालकों को जोड़ने में लगे हुए हैं। निष्ठा व समर्पण भाव से वे कार्य कर रहे हैं,सब बधाई के पात्र हैं,पर ये प्रयास भी ‘ऊंट के मुँह में जीरा’ ही साबित हो रहे हैं। बाल साहित्य की दुनिया में चल रही बौद्धिक बहसों व मठाधीशों से हमारा कोई सरोकार नहीं हैं। हम तो सीधे-सीधे यही चाहते हैं कि बालकों को ज्यादा से ज्यादा बाल साहित्य से जोड़ा जाए। बाल साहित्य ही वास्तव में संस्कार साहित्य है,जो बच्चों को सही दिशा देने का कार्य करता है।

शैक्षणिक पाठ्यक्रमों से अलग किताबें पढ़ने-पढ़ाने की प्रवृत्ति इन दिनों घटती जा रही है। बच्चों को तरह-तरह की आकर्षक चमकीली वस्तुएं उपहार में दी जाती है। वे बचपन से बाजार देख रहे हैं,सुन रहे हैं और गुन रहे हैं। दुनिया बाजार में तब्दील हो रही है,बच्चों को सबसे बड़ा उपभोक्ता बनाने की साजिश खामोशी से रची जा रही है। यह स्थिति खतरनाक है और इसका भविष्य कैसा होगा,हमारे बच्चों की संवेदनाओं का किस तरह मोल-भाव कर लिया जाएगा,यह सोचकर ही डर लगता है। बाल साहित्य के संसार से परिचय करवाकर इस खतरे को कम किया जा सकता है। किताबें बच्चों को जीवन दृष्टि देंगी।

 

परिचय-राजकुमार जैन का उपनाम ‘राजन’ है। आकोला(राजस्थान)में २४ जून को जन्में श्री जैन की शिक्षा एम.ए.(हिन्दी)है। लेखन विधा-कहानी, कविता है,जिसमें पर्यटन,लोक जीवन एवं बाल साहित्य प्रमुख है। आपका निवास आकोला में है। आपकी अनेक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है, जिसमें-‘नेक हंस’ और ‘लाख टके की बात’ आदि प्रमुख है। हिन्दी सहित राजस्थानी, अंग्रेजी में भी बाल साहित्य की इनकी ३६ पुस्तकों का प्रकाशन हों चुका है,तो हिंदी बाल कहानियों का मराठी अनुवाद २० पुस्तकों में प्रकाशित हों गया है। विशेष रुप से ‘खोजना होगा अमृत कलश’ (कविता संग्रह) पंजाबी,मराठी,गुजराती सहित नेपाली एवं सिंहली में अनुदित होकर श्रीलंका से प्रकाशित हुआ है। पत्र-पत्रिकाओं में हजारों रचनाएं प्रकाशित करा चुके श्री जैन की रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी व दूरदर्शन सहित विभिन्न चैनल्स से हो चुका है। आपने सम्पादन के क्षेत्र में ‘रॉकेट'(बाल मासिक),’श्रमनस्वर’,’टाबर टोली’ एवं ‘हिमालिनी'(नेपाल)पत्रिकाओं को सहयोग दिया है। ‘राजन’ नाम से प्रसिद्ध बाल रचनाकार कईं मासिक पत्रिकाओं के सम्पादक रह चुके हैं। अनुवाद के निमित्त- ‘सबसे अच्छा उपहार’ बाल कहानी संग्रह पंजाबी,मराठी,उड़िया,गुजराती और अंग्रेजी में अनुदित हुआ है। हिन्दी बाल साहित्य की उत्कृष्ट पुस्तक पर संस्थापक के रुप में आप प्रति वर्ष अखिल भारतीय स्तर पर २१ हजार रूपए का ‘पं. सोहनलाल द्विवेदी बाल साहित्य पुरस्कार’(११ वर्ष से सतत) और ५ हजार राशि के सम्मान देते हैं। ‘राजकुमार जैन राजन फाउण्डेशन’ की स्थापना करने के साथ ही आप साहित्य,शिक्षा,सेवा एवं चिकित्सा में निरन्तर सक्रिय हैं। आपको प्रमुख पुरस्कार और सम्मान में उदयपुर से ‘राजसिंह अवार्ड’ (२ बार),’शकुन्तला सिरोठिया बाल साहित्य पुरस्कार’,राजस्थानी भाषा,साहित्य एवं संस्कृति अकादमी (राज. सरकार),‘जवाहर लाल नेहरू राजस्थानी बाल साहित्य पुरस्कार’,गिरिराज शर्मा स्मृति सम्मान,जयपुर द्वारा ‘समाज रत्न-२०१६’ और भारत-नेपाल मैत्री संघ द्वारा साहित्य सेतु सम्मान-२०१८ सहित १०१ से अधिक पुरस्कार-सम्मान प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। श्री जैन ने विदेश यात्रा में अमेरिका,कनाडा, मॉरीशस,मलेशिया,थाईलेंड,श्रीलंका और नेपाल आदि का भ्रमण किया है। आप विशेष रुप से हिन्दी के प्रचार-प्रसार सहित बाल साहित्य उन्नयन व बाल कल्याण के लिए विशेष योजनाओं का क्रियान्वयन करते हैं।

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