संदीप धीमान
चमोली (उत्तराखंड)
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मृत्यु निश्चित है, फिर भी अहम है,
ना जाने कैसा मेरे ‘मैं’ का वहम है।
हर ‘मैं” को दिख रहा, मेरा ही ‘मैं’ है,
अपने ‘मैं’ पर यहां सबका रहम है।
ढल रहा जीवन, ले कर्मों को अपने,
न जाने पापों का कहां सहम है।
कर्मों की गठरी है भविष्य को बांधी,
अंत तो यहां पर उनका भी दहन है।
मृत्यु है निश्चित, फिर भी अहम है,
न जाने कहां आत्म मंथन गहन है॥