राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड)
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चले थे हम कहाँ से,
कहाँ पर हमें है जाना
मिला साथ हमें कहाँ से,
कहाँ पर अभी ठिकाना।
नहीं शिकायत हमें जमाने से,
नहीं कभी कोई यकीन जाना
चले थे बस अपनी ही मौज में,
संग लिए हुए औरों का तराना।
तरानों के संग चलते-चलते,
मिला कष्टों का ताना-बाना
चलते-गिरते, चलते-संभलते,
मिल ही गया अपना तराना।
जब अपने तराने संग चला,
साथ आया पूरा ही जमाना
अब मेरे ही संग चलने लगा,
गाने लगे सब मेरा ही गाना।
मैं अपनी ही मौज में गाता रहा,
दोस्तों संग केवल चलता रहा
फिर आई कहीं से काली हवा,
बचा न सकी मुझे फिर दवा।
इलाज भी मेरा अब रूठ गया,
मैं तो बस अब पूरा टूट गया
ऐसे में मिला मुझे एक साथ,
बिना देरी मैंने भी बढ़ाया हाथ।
जुडते ही देखा मैंने सपना,
सपने में लगा कोई अपना
अपनों के संग मैं चल पड़ा,
चलते ही मिला नया तराना।
नए तराने संग जीवन गीत गाना है,
गाते-गाते जीवन में आगे बढ़ना है।
बढ़ते हुए सहर्ष ज्ञान फैलाना है,
यही मेरा तराना है, यही मेरा तराना है॥
परिचय– साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैL जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैL भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैL साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैL आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैL सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंL लेखन विधा-कविता एवं लेख हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैL पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंL विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।