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प्रेरणा

ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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बड़ी बहू को रोते देख, दादी सास से रहा नहीं गया। खटिया से खड़ी हो कर लाठी के सहारे टुक-टुक करती हुई प्रेरणा के पास पहुंच गई। सिर पर हाथ फेरते हुए बोली, “क्या बात है बहू, क्यों रो रही हो”। प्रेरणा दादी सास से लिपट कर फफक- फफक कर रोने लगी। उसकी आँखों से आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।
कहने लगी, “दादी माँ अब जीना मुश्किल हो गया है। घर में मांजी के ताने सुनती हूँ और बाहर लोगों के। कभी-कभी तो ऐसा मन करता है कि पंखे से लटक कर अपनी जान दे दूं, लेकिन जब इन बच्चों की तरफ देखती हूँ तो मेरा कलेजा भर आता है।” प्रेरणा ने सिसकियाँ लेते हुए कहा।
“नहीं बहू, हिम्मत मत हारो। उस विधाता के सामने किसी की नहीं चलती। मेरी बच्ची चुप हो जाओ। तुम अकेली नहीं हो इस दुनिया में, तुम्हारे जैसी बहुत-सी महिलाएं हैं जो अपने बच्चों के लिए बुरे से बुरे वक्त में भी जी रही है।” दादी ने प्रेरणा को समझाते हुए कहा।
प्रेरणा शादी के ५ साल बाद ही विधवा हो गई थी। उसके छोटे-छोटे २ बच्चे थे सोनू और चिंकी। सोनू की उम्र २ साल तथा चिंकी की उम्र अभी १ साल की ही थी, लेकिन होनी को कौन टाल सकता था। किसको पता था कि इतनी छोटी-सी उम्र में बच्चों के सिर से उनके पिता का साया उठ जाएगा।
प्रेरणा का पति राहुल सिविल इंजीनियर था। प्रेरणा से बहुत प्यार करता था। उनकी वैवाहिक जिंदगी बहुत हँसी-खुशी से निकल रही थी। एक दिन सोनू के जन्मदिन की खुशी में राहुल ड्यूटी से घर लौट रहा था कि रास्ते में भयंकर दुर्घटना हो गई और राहुल की मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गई थी। ये सुनते ही जन्मदिन की सारी खुशी मातम में बदल गई थी। प्रेरणा का रो-रो कर बुरा हाल था। विधि के विधान को कोई मिटा नहीं सकता था।
राहुल के गुजर जाने के बाद तो जैसे प्रेरणा की जिंदगी नरक ही बन गई थी। बेचारी का जीना मुश्किल हो गया था। कभी सास के ताने सुनती तो कभी गाँव वालों के ताने सुनती थी। आज भी कुछ ऐसा ही हुआ था।
“मनहूस खा गई मेरे बेटे को” सास ने कहा था। बेचारी की आँखों से अश्रुओं की धारा बह रही थी। और करती भी क्या! बैठे-बैठे अपने भाग्य को कोस रही थी और रोए जा रही थी।
उसके देवर और देवरानी का व्यवहार भी ठीक नहीं था। छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा करते रहते थे। प्रेरणा की सास ने कभी भी उसका पक्ष नहीं लिया। हमेशा छोटे बेटे-बहू का ही पक्ष लेती थी। प्रेरणा बहुत दुःखी हो गई थी।
दादी ने समझाया, “बेटी रो मत। मैं जानती हूँ एक विधवा का जीवन क्या होता है। तेरे दादाजी भी मुझे भरी जवानी में छोड़ कर चले गए थे। मैंने किस तरह से जीवन गुजारा है, मैं ही जानती हूँ। बेटी ये दुनिया बहुत ज़ालिम है। यहां न्याय नहीं मिलता है, बल्कि न्याय मांगने वालों पर अत्याचार होता है। इसलिए बेटी चुप रहने में ही फायदा है। भगवान ने तुम्हारी बिगाड़ी है तो सुधारेगा भी वही। बस उस पर भरोसा रखो। वो सबका भला करता है। जैसे जिन्दगी कट रही हैं वैसे कटने दो मेरी बच्ची।” दादी सास ने बड़ा दुःख लगा कर कहा।
प्रेरणा दादी से लिपट कर रोए जा रही थी। और अपने भाग्य को कोसे जा रही थी।
“हाय! राहुल तुम मुझे छोड़कर क्यों चले गए। मैं कैसे जी पाऊंगी तुम्हारे बिना। मुझमें दुनिया से लड़ने की शक्ति नहीं है।” उसके हाथ-पैर कांप रहे थे।
“बहू अपने-आपको सम्भालो। इन छोटे-छोटे बच्चों की तरफ भी देखो। अब तुम्हारे सिवा कौन है इनका। बेटी इन बच्चों के लिए तुम्हें हर मुश्किल से मुश्किल परिस्थिति का सामना करना पड़ेगा। विधि के विधान को कोई मिटा नहीं सकता।” दादी सास ने बड़े प्यार से समझाया।
“ओह! दादी माँ, एक आप ही तो हो, जो मुझे समझ सकती हो, वर्ना परिवार और गाँव वाले तो मेरे दुश्मन बने हुए हैं।” प्रेरणा ने रोते हुए कहा।
प्रेरणा को समझा-बुझाकर दादी अपनी खटिया पर आकर लेट गई। उनकी आँखों से भी आँसू छलक रहे थे।
‌”हे भगवान मुझे उठा लेता राहुल की जगह। अब, मैं जी कर क्या करुंगी। आखिर इस बेचारी का कसूर क्या है जो इसे इतनी बड़ी सज़ा दी है।” दादी माँ खटिया पर लेटी-लेटी भगवान को कोस रही थी।
प्रेरणा पढ़ी-लिखी महिला थी। शादी के बाद वो बहुत खुश थी। राहुल के हर सवाल का जवाब वो तपाक से देती थी। घर में सबको अनुशासन में रखतीं थी। समय पर सबको उठाती। समय पर खाना खिलाती। हर काम को समय पर करती थी। सभी उससे बहुत खुश थे, लेकिन उसकी खुशी को शायद किसी की नजर लग गई थी। और वो दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो गई थी।
ऐसे ही काफी दिन गुजर गए थे। एक दिन प्रेरणा को नींद नहीं आ रही थी। उसे राहुल की बहुत याद आ रही थी। वो सोचते-सोचते अतीत में खो गई थी।
“प्रेरणा औरतें कितना काम करती हैं, फिर भी उन्हें प्रताड़ित किया जाता है। अपने अधिकारों की मांग करती है तो उन्हें दुत्कार दिया जाता है। कितना अत्याचार सहती है बेचारी। आखिर क्यों ?क्या औरत होना गुनाह है। नहीं… नहीं… मैं ऐसा नहीं होने दूंगा। उन्हें भी खुश रहने का अधिकार है। अपनी जिंदगी जीने का अधिकार है।” राहुल ने कहा था।
“क्या तुमने ठेका ले रखा है औरतों की रक्षा करने का।” मुझे मसखरी सूझी।
“नहीं, प्रेरणा मेरा खून खोलता है जब औरतों के ऊपर अत्याचार होते देखता हूँ। मुझसे सहन नहीं होता ये सब।”
“बहुत सम्मान करते हैं आप महिलाओं का। ये तो बड़ी अच्छी बात है।”
“हाँ प्रेरणा, मेरी इच्छा है कि तुम एल.एल.बी. करो और एक अच्छी अधिवक्ता बनकर महिलाओं को न्याय दिलवाओ।”
प्रेरणा एकदम अतीत से बाहर आई। उसका सिर दर्द से फटा जा रहा था। आँखों से अश्रुओं की धारा बह रही थी। कहने लगी- “हाँ राहुल, मैं तुम्हारी इच्छा जरूर पूरी करुंगी।”
“दादी माँ, अब मैं चुप नहीं रहुंगी। अपने हक एवं अधिकारों के लिए लडूंगी।”
प्रेरणा का विवेक जाग गया था। उसने आँसू पोंछ लिए थे। उसने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि अब मुझे कानून की पढ़ाई करनी है। और फिर एक दिन प्रेरणा ने विधि महाविद्यालय में प्रवेश ले ही लिया। वो बहुत मेहनत करने लगी। बच्चों को भी संभालतीं और रोज महाविद्यालय भी जाती।
प्रेरणा की सास को ये सब बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था। वो पुराने ख्यालातों की थी। कहने लगी,- “मेरे बेटे को तो खा गई और अब बची-कुची इज्जत को भी मिट्टी में मिलाने पर तुली है। पता नहीं, क्या करके छोड़ेगी कर्मजली।”
उसकी सास ऐसे ही बड़बड़ाती रहती थी, लेकिन प्रेरणा ने बिल्कुल परवाह नहीं की और पढ़ाई जारी रखी।
प्रेरणा के ससुर बिल्कुल सीधे-सादे व्यक्ति थे। उनको घर-गृहस्थी से कोई मतलब नहीं था, लेकिन राहुल के मरने का बहुत बड़ा ग़म था उन्हें। प्रेरणा पर हो रहे अत्याचार का जब कभी विरोध करते तो मुँह की खानी पड़ती थी। इसलिए वो चुपचाप अपने कमरे में ही बैठे-बैठे कुढ़ते रहते थे।
एक दिन प्रेरणा को पढ़ते-पढ़ते अचानक नींद आ गई थी। वो सपने में खो गई थी… “प्रेरणा तुम्हें मेरी अन्तिम इच्छा जरूर पूरी करनी है। महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को तुम्हें मिटाना है। उन्हें न्याय दिलाना है।”
प्रेरणा एकदम हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई, “हाँ राहुल मुझे तुम्हारी अन्तिम इच्छा पूरी करनी है।” प्रेरणा ने कहा। और प्रेरणा फिर पढ़ाई करने लग गई।
प्रेरणा के जूनून एवं जज्बे को देखकर हर कोई आश्चर्यचकित हो रहा था। वो रात-दिन मेहनत करने लगी थी। और फिर एक दिन वो भी आया, जब प्रेरणा ने एल.एल.बी. की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। उसकी आँखों में खुशी के आँसू छलक रहे थे। उसे विश्वास नहीं हो रहा था। वो डिग्री लेकर सीधे अपनी दादी सास के पास गई और कहने लगी, “दादी माँ, अब राहुल का सपना जरूर पूरा होगा। मुझे एल.एल.बी. की डिग्री मिल गई है। मैंने कानून की पढ़ाई कर ली है। अब मैं महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ लडूंगी। शोषित एवं पीड़ित महिलाओं को उनका हक दिलाकर रहुंगी।”
“हाँ मेरी बच्ची, मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है।” दादी माँ ने कहा।
कहने लगी, “आज राहुल होता, तो कितना खुश होता।”
दादी माँ ने कहा, “बेटी राहुल की यादें तुम्हारे साथ है। वो हमेशा तुम्हारे दिल में रहेगा। और तुम्हें हिम्मत देता रहेगा। सोनू और चिंकी के रूप में उसकी प्रेम की निशानी तेरे पास है। इन बच्चों का ख्याल रखना और इनको बहुत बड़ा अफसर बनना।”
दादी सास की बात सुनकर प्रेरणा में अजीब तरह की हिम्मत दिखाई दे रही थी। उसने आँसू पोंछ लिए थे। प्रेरणा की मेहनत और लगन का सब लोहा मान रहे थे। प्रेरणा महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ मेहनत और ईमानदारी से कार्य कर रही थी और उन्हें न्याय दिलवा रही थी। प्रेरणा का यह कार्य सबके लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन गया था।

परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।

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