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मेरा विवाह

सुजीत जायसवाल ‘जीत’
कौशाम्बी-प्रयागराज (उत्तरप्रदेश)
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हास्य…

सुहानी फरवरी की रात,सुनाई पिता जी ने एक बात,
तेरी काली करतूतों ने मुझे अब तक बहुत सताया है,
इसीलिए तेरे विवाह का मेरे मन में विचार आया है।

मैंने कहा-पिताजी,मैं बेचारा,मेरी कविता एक सहारा,
मौज़-मस्ती के दिनों में मुझ पर कृपा फ़रमाइए
मेरी शादी करा कर मुझे बलि का बक़रा ना बनाइए।

सुनकर मेरी करुण पुकार पिताजी तिलमिला गए,
खरी-खोटी सुनाते हुए वो अपनी ज़िद पर आ गए
बोले,-रे मूर्ख,गधे,नालायक,तू हुआ शादी के लायक,
बिछाकर सघन जाल बस एक छोटा-सा बजट पारित करवाऊंगा
एक लाख इक्यावन हज़ार तिलक में,व लग्जरी कार भी दिलवाऊंगा।

फिर पढ़कर मेरी शादी का इश्तिहार,
लखनऊ से पधारा एक मूर्धन्य सा परिवार
बोले-हे कविवर राजकुमार,करो ये संबंध हमारा स्वीकार।

मेरे नगर के ज्ञानी पंडित की अब सुनो पंडिताई,
प्रथम अप्रैल को पंडित जी ने मेरी लगन थी बनाई
लत नृत्य,कुकुरभोज,फिर जयमाला की रस्म आई,
दूसरे दिन सुहागरात की मधुर मिलन की घटा छाई।

औरों की तरह मैंने भी पूरी रात जागकर ही बिताई,
हर एक पल का हो सदुपयोग इसलिए योजना बनाई
एक-एक करके अपनी सारी कविताएं सुंदरी को सुनाई,
छेड़ा जो मैंने हास्य रस वह मंद-मंद मुस्कुराई
करुण रस की करुणा से अपने अश्रु भी बहाई,
वीर एवं भयानक सुन वह सकपकाई-बरबराई
जब बारी श्रृंगार रस की आई,
मेरी अम्मा ने आकर कुंडी खटखटाई।

सुबह के नौ बजे हैं बहू को झेलाते हुए तुझे शरम नहीं आई,
देख मेरे इस कृत्य से वह सुंदरी घबरा गई
करवाकर विवाह विच्छेद सीधा मायके सिधार गई।

फिर एक दिन पूज्य पिता जी ने मुझे सांत्वना दिलाई,
मेरी पीठ थपथपाई
बोले- बेटा न हो उदास,अब ना ही हो निराश,
अबकी तेरा ब्याह किसी मृदुल कवियित्री से ही करवाऊंगा
दहेज में लग्जरी कार नहीं,भक्ति काल की कृतियां दिलवाउंगा।

सुनकर पिताजी की दहाड़,
मुझमें हुआ नव आशा का संचार
मैंने कहा,सौगंध है आधुनिक कवियों की,
मैं कुल का मान बढ़ाऊंगा।
आपके सूने इस आँगन को,पूरे एक दर्जन शिशु कवियों से सजाऊंगा॥

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