संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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पिता का दौर कुछ और था,
मेरी भाग-दौड़ कुछ और है
कोशिश यही है पिता जैसा जीऊँ,
जियो तो वैसे, जैसे पिता का जीना।
न दारू न सिगरेट, दूध गाय का पीना,
परिवारों में युक्त साथ संयुक्त जीना
दादी भी साथ, दादा, चाचा संग जीना,
बुआ साथ थी, प्रेम अद्भुत करीना।
इकट्ठा सभी थे, था पिता जी का जीना,
भरे सारे घर थे, था मस्ती में जीना
आधुनिकता, विलासिता वो फैशन ने छीना,
गज़ब भाई का प्यार, दादा-दादी संग जीना।
वही तो खुशी थी, संग गम में भी जीना,
विलासिता ने कुचला, रुख कैसे हो जीना
फटे अब कलेजा, दर्दे दिल अब है जीना,
अब भी मेरी कोशिश, पिता जैसा जीना।
अकेला हुआ सब, न संग भाई-बहना,
पिता तो पिता थे, वो पिता का था जीना
बड़ा मस्तमौला पिता जी का जीना,
बसा लो हृदय में पिता जैसा जीना।
वही जिन्दगी थी, था सचमुच में जीना,
जियो तो जियो जैसा पिताजी का जीना॥