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पूछ रहा हूँ स्वयं से…

शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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मुझे याद है!
जब मैंने पहली बार फूलों को देखा था
तब वे बड़े कोमल, संजीदे से थे,
मैं समझ गया, नया हूँ इनके लिए।

मुझे याद है!
जब मैं पहली बार फर्श पर चला था
तब पैर थे नरम , धरा कठोर थी,
माँ की गोद से जो उतरा था आश्रय छोड़।

मुझे याद है!
जब मैं पहली बार पाठशाला गया था
तब अपने जैसे हम उम्र बच्चों में खो गया था,
मैं स्तब्ध था! शोरगुल में अध्यापक से पड़े चांटे से।

मुझे याद है!
जब मैंने पहला अन्न का कोर खाया था
तब चबाना कहां आता था ?
मुँह हिलाते ही झट से कोर अंदर निगल लिया।

मुझे याद है!
जब माँ ने मुझे मेरे जैसा छोटा भाई दिखाया था
तब मैंने उसे बहुत स्नेह किया,
लेकिन बड़े होने पर मुझे घर से निकाल दिया।

अब क्या करूं, माता-पिता दोनों सहारे छूट गए,
संगी-साथी रूठ गए , अपने बच्चे टूट गए
मेरी कमियों की बस्ती में कच्चे धागे गूंथ गए।

अपने ही स्कूल के कमरे में पड़ा यादें ताजा कर रहा हूँ,
पूछ रहा हूँ स्वयं से…
और क्या-क्या तुम्हें याद है!
ये यादें तुम्हारे बच्चों के अक्स से मिल लौटी हैं,
तुम इतने समझदार न तब थे, न अब हो!!

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