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चमकते रहो

कवि योगेन्द्र पांडेय
देवरिया (उत्तरप्रदेश)
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चाँद-तारों जैसा चमकते रहो,
फूल कलियों-सा तुम महकते रहो।

राह में लाख बाधाएं आयें मगर,
मंज़िलों की तरफ़ यूँ ही बढ़ते रहो।

मन का दर्पण निर्मल तुम्हारा रहे,
देखकर जिसमें तुम संवरते रहो।

साथ मिल जाए संतों का गर कहीं,
उनके सोहबत में निखरते रहो।

जब अंधेरा सताये ज़माने को फिर,
रौशनी बन कर तुम बिखरते रहो॥

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