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मेरे गिरधर,मेरे कन्हाई जी

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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जब भी आवाज दूं चले आना,
मेरे गिरधर,मेरे कन्हाई जी।
रीत प्रीत की भूल न जाना,
जो भक्त-भगवान बनाई जी।

तन-मन प्यासा जन्म-जन्म से,
दरस को तरसे ये अखियाँ।
बोल बोल-के छेड़े है जग,
ताने देती है सखियाँ।
लाज मेरी भी अब तुम्हारे हाथों,
आकर लाज बचाओ जी।
जब भी आवाज दूं चले आना,
मेरे गिरधर,मेरे कन्हाई जी।
रीत प्रीत की भूल न जाना,
जो भक्त-भगवान बनाई जी॥

भक्त प्रहलाद,राधा और मीरा,
पुकार न खाली गई कभी।
एक आवाज पर दौड़ पड़े तुम,
भक्त पुकारे तुमको जब भी।
भरी सभा जब द्रोप पुकारी,
लाज बचाई आकर जी।
जब भी आवाज दूं चले आना,
मेरे गिरधर,मेरे कन्हाई जी।
रीत प्रीत की भूल न जाना,
जो भक्त-भगवान बनाई जी॥

तीन लोक मित्र पर वारे,
गूढ़ मित्रता सिखलाई जी।
मित्र सुदामा गरीब जन्म का,
पर मित्रता तुमने निभाई जी।
मित्र न कोई छोटा-बड़ा हो,
मित्र ‘अजस्र’ बनाई जी।
जब भी आवाज दूं चले आना,
मेरे गिरधर,मेरे कन्हाई जी।
रीत प्रीत की भूल न जाना,
जो भक्त-भगवान बनाई जी॥

परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मा

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