प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी
सहारनपुर (उप्र)
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हे! पाप हरण शिव शंकर जी मैं अल्प बुद्धि महिमा गाऊं।
कर पाए देव न मिल वर्णित कैसे मैं वर्णन कर पाऊं॥
अपनी-अपनी बुद्धि स्तर गुणगान करें सब परमेश्वर।
मिल वेद कहें नेति-नेति उन अनंत शिव को मैं ध्याऊं॥
शिव सुंदर सगुण रूप मन को मेरे लगता है अति सुखकर।
जो मन वाणी को शुद्ध करें उन अनंत शिव को मैं ध्याऊं॥
तुम सृजक, पालक, संघारक बंटकर रूपों में सर्वेश्वर।
जो तर्क-कुतर्कों से हैं परे उन अनंत शिव को मैं ध्याऊं॥
बिन कारण के कुछ भी न घटे इस जग में स्वामी जगदीश्वर।
हैं अदृश्य सत्ताधीश शिवे उन अनंत शिव को मैं ध्याऊं॥
जड़-बुद्धि अभागे हैं वे जन शंका अस्तित्व करें ईश्वर।
कण-कण में सर्व समाहित हैं उन अनंत शिव को मैं ध्याऊं॥
जैसे नदिया-सागर में मिले ये प्राण मिलेंगे प्राणेश्वर।
शिव राम में हैं, सब शिव में हैं उन अनंत शिव को मैं ध्याऊं॥
सबको देते समृद्धि सदा भोगों से परे शिव सिद्धेश्वर।
तेजोमय तटस्थ विषय-भोग उन अनंत शिव को मैं ध्याऊं॥
ब्रह्मा, विष्णु को थाह नहीं तेजस- स्वरूप हे! लिंगेश्वर।
दोनों श्रद्धा से नतमस्तक उन अनंत शिव को मैं ध्याऊं॥
‘शिवदासी’ वंदना भक्ति स्वर सुन लो शिव स्वामी विश्वेश्वर।
काशी का आश्रय लेकर के उन अनंत शिव को मैं ध्याऊं॥
हे! पाप हरण शिव शंकर जी मैं अल्प बुद्धि महिमा गाऊं।
कर पाए देव न मिल वर्णित मैं कैसे वर्णन कर पाऊं॥