डॉ. संगीता जी. आवचार
परभणी (महाराष्ट्र)
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यदि सम्भव होता है मुझसे,
तो खुशियाँ बिखेरने की
कोशिश जरूर करूंगी,
लेकिन ऐसा नहीं कर पाई
तो किसी की भावनाओं को,
ठेस तो नहीं पहुंचाऊंगी।
यदि कर पाई तो किसी का,
भला करने का भरसक
प्रयास जरूर करूंगी,
ना कर पाई तो किसी के लिए
कभी-कोई गलत शब्द का,
इस्तेमाल नहीं करूंगी।
यदि इन्सान समझ नहीं पाईL
तो मैं अपने आप को
इन्सान कहने से मना कर दूँगी,
हर जीव ईश्वर का रुप जान
मान सम्मान की रक्षा करने
उसकी आराधना करूंगी!
यदि इन्सानियत से परे
कोई काम करने की बात
मुझसे कहीं हो जाए अगर,
तौबा करती हूँ ऐसी किसी
आज्ञा का पालन,
सौ जनम में नहीं करूंगी।
हर वक्त, हर पल, हर लम्हा,
सही राह दिखाने हेतु
निरंतर दीप जलाती रहूँगी।
और यदि ऐसा नहीं कर पाई,
तो कसम से मैं दुनिया का
कोई काम नहीं करूंगी॥