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यह कैसा श्राद्ध…!

शीलाबड़ोदिया ‘शीलू’
इंदौर (मध्यप्रदेश )
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पितृ पक्ष विशेष…

भारतीय रीति-रिवाज और परंपराओं में श्राद्ध पक्ष का बड़ा महत्व है, जिसमें अपने परिवार के पूर्वज और बड़े-बुजुर्गों की आत्मा की शांति-मुक्ति के लिए पूजा-पाठ, हवन, तर्पण आदि कर प्रार्थना की जाती है। उन लोगों की खुशी या मुक्ति के लिए प्रार्थना की जाती है, जो इस दुनिया में अब नहीं रहे। जब भी जीवित रहते हैं, तब उन्हें किस चीज की जरूरत है, वह भूखे हैं या प्यासे हैं, किस बात से दुखी हैं, या किसी बात से वह खुश होंगे ?, पर घर के किसी सदस्य को उनकी चिंता नहीं होती, लेकिन जब वह इस दुनिया को छोड़कर चले जाते हैं, तब उनके भूखे- प्यासे रहने और आत्मा को तृप्त करने की चिंता हो जाती है, ताकि उनकी आत्मा परिवार के सदस्यों को परेशान ना करें और पूर्वजों की कृपा बनी रहे। आज के समय में बुजुर्ग माता-पिता, दादा-दादी को साथ रखना लोग पसंद नहीं करते हैं। उनका उठना-बैठना, खाना- पीना और बोलना-चलना पसंद नहीं करते, उन्हें उनके साथ रहने में शर्म आती है। उनके साथ रहने से जीवन में परेशानियाँ खड़ी हो जाती है। उनकी उपस्थिति परिवार में क्लेश का कारण बनती है। कहीं-कहीं परिवार सास-ससुर के व्यवहार के कारण टूटने की कगार पर आ जाते हैं। बढ़ती उम्र में उन्हें प्यार, ध्यान, साथ और सहारे की आवश्यकता होती है। कभी-कभी बुजुर्गों का व्यवहार बच्चों जैसा हो जाता है। खाने-पीने की इच्छाएँ आतुर हो उठती हैं और कभी-कभी बच्चों जैसी जिद भी करने लगते हैं, जो उम्र के एक पड़ाव में होती है, लेकिन परिवार के लोग उसे सहन नहीं कर पाते हैं। जब जीवित रहते हुए हमें उनके कारण इतनी परेशानी का अनुभव होता है, तो हम सबको यह समझना चाहिए कि आने वाले समय में हम भी इस स्थिति से गुजरेंगे। हो सकता है कि हमारा व्यवहार उन बुजुर्गों से भी ज्यादा खराब हो जाए, तो फिर हमारी संतान कैसा व्यवहार करेगी ? जब उनके जीते-जी हम उन्हें सुख नहीं दे पाते तो मरने के बाद उन्हें खिलाने-पिलाने, भोग लगाने, उन्हें खुश करने और दान-पुण्य करने का क्या फायदा ? बेहतर हो कि जीते-जी फ़िक्र करें, प्रेम करें।

परिचय-शीला बड़ोदिया का साहित्यिक उपनाम ‘शीलू’ और निवास इंदौर (मप्र) में है। संसार में १ सितम्बर को आई शीला बड़ोदिया का जन्म स्थान इंदौर ही है। वर्तमान में स्थाई रूप से खंडवा रोड पर ही बसी हुई शीलू को हिन्दी, अंग्रेजी व संस्कृत भाषा का ज्ञान है, जबकि बी.एस-सी., एम.ए., डी.एड. और बी.एड. शिक्षित हैं। शिक्षक के रूप में कार्यरत होकर आप सामाजिक गतिविधि में बालिका शिक्षा, नशा मुक्ति, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, बेटी को समझाओ अभियान, पेड़ बचाओ अभियान एवं रोजगार उन्मुख कार्यक्रम में सक्रिय हैं। इनकी लेखन विधा-कविता, कहानी, लघुकथा, लेख, संस्मरण, गीत और जीवनी है। प्रकाशन के रूप में काव्य संग्रह (मेरी इक्यावन कविता) तथा १५ साझा संकलन में रचनाएँ हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी को स्थान मिला है। इनको मिले सम्मान व पुरस्कार में गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड सम्मान (साझा संकलन), विश्व संवाद केंद्र मालवा (मध्य प्रदेश) द्वारा सम्मान, कला स्तम्भ मध्य प्रदेश द्वारा सम्मान, भारत श्रीलंका सम्मिलित साहित्य सम्मान और अखिल भारतीय हिन्दी सेवा समिति द्वारा प्रदत्त सम्मान आदि हैं। शीलू की विशेष उपलब्धि गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में रचना का शामिल होना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य साहित्य में उत्कृष्ट लेखन का प्रयास है। मुन्शी प्रेमचंद, निराला, तुलसीदास, सूरदास, अमृता प्रीतम इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज गुरु हैं। इनका जीवन लक्ष्य-हिन्दी साहित्य में कार्य व समाजसेवा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी हमारी रग-रग में बसी है।”