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मेरी मातृभाषा-मेरा सम्मान

मधु मिश्रा
नुआपाड़ा(ओडिशा)
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अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस स्पर्धा विशेष….

स्त्री के गर्भ में होती है,
ईश्वर प्रदत्त एक अद्भुत मिट्टी…।
जिसे अपनी ममता और असीम स्नेह,
से गूंधकर स्त्री उसे देती है आकार…।
माँ की स्नेहसिक्त धड़कनों से शिशु में,
होता है जीवनदायिनी रक्त संचार…।
नौ माह पश्चात होता है,
प्यारा सृजन साकार…।
माँ कराती बच्चे को जब,
अमृत तुल्य दुग्ध आहार…।
होने लगता अब शिशु में,
अद्भुत स्नेह संचार…।
पहली बारिश की बूँदों से जैसे,
धरती में आए निखार…।
जैसे ही माँ का स्पर्श बच्चा लेता है पहचान,
माँ को देख आती बच्चे के चेहरे में मुस्कान…।
जिसे देख कर माँ की सारी,
मिट जाती है थकान…।
माँ की उँगली थाम उसे जब,
पुकारता है बच्चा….’माँ’।
माँ शारदे की इस अनन्य कृपा में मानो,
समा गई हो दुनिया…।
ये बच्चे से मिलती है माँ को,
या होती माँ की प्रेम परिभाषा…।
हाँ गढ़ जाती है इन्हीं में ही,
हमारी ‘मातृभाषा’॥

परिचय-श्रीमती मधु मिश्रा का बसेरा ओडिशा के जिला नुआपाड़ा स्थित कोमना में स्थाई रुप से है। जन्म १२ मई १९६६ को रायपुर(छत्तीसगढ़) में हुआ है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती मिश्रा ने एम.ए. (समाज शास्त्र-प्रावीण्य सूची में प्रथम)एवं एम.फ़िल.(समाज शास्त्र)की शिक्षा पाई है। कार्य क्षेत्र में गृहिणी हैं। इनकी लेखन विधा-कहानी, कविता,हाइकु व आलेख है। अमेरिका सहित भारत के कई दैनिक समाचार पत्रों में कहानी,लघुकथा व लेखों का २००१ से सतत् प्रकाशन जारी है। लघुकथा संग्रह में भी आपकी लघु कथा शामिल है, तो वेब जाल पर भी प्रकाशित हैं। अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में विमल स्मृति सम्मान(तृतीय स्थान)प्राप्त श्रीमती मधु मिश्रा की रचनाएँ साझा काव्य संकलन-अभ्युदय,भाव स्पंदन एवं साझा उपन्यास-बरनाली और लघुकथा संग्रह-लघुकथा संगम में आई हैं। इनकी उपलब्धि-श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान,भाव भूषण,वीणापाणि सम्मान तथा मार्तंड सम्मान मिलना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-अपने भावों को आकार देना है।पसन्दीदा लेखक-कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद,महादेवी वर्मा हैं तो प्रेरणापुंज-सदैव परिवार का प्रोत्साहन रहा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी मेरी मातृभाषा है,और मुझे लगता है कि मैं हिन्दी में सहजता से अपने भाव व्यक्त कर सकती हूँ,जबकि भारत को हिन्दुस्तान भी कहा जाता है,तो आवश्यकता है कि अधिकांश लोग हिन्दी में अपने भाव व्यक्त करें। अपने देश पर हमें गर्व होना चाहिए।”

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