पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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रंग बरसे भीगे चुनर वाली… रंग बरसे… रंगों का त्योहार, भांग का खुमार और हँसी-ठिठोली के मौसम को लाने वाला पर्व है। इसके रंगीले मिजाज और उत्साह की बात ही कुछ और है। मौज-मस्ती और प्रेम-सौहार्द से सराबोर यह त्यौहार अपने अंदर परंपराओं के विभिन्न रंगों को समेटे हुए है, जो विभिन्न स्थानों में अलग-अलग रूपों में सजे-धजे नजर आते हैं।
विभिन्नता में एकता वाले इस देश-विभिन्न क्षेत्रों में इस त्यौहार को मनाने का अलग-अलग अंदाज है, परंतु इन विविधताओं के बावजूद हर परंपरा में एक समानता अवश्य है-यह है प्रेम और उल्लास, जो लोगों को आज भी सब*कुछ भूल कर हर्ष और प्रसन्नता से भर देते हैं।
◾मथुरा वृंदावन की होली-
रंग-गुलाल से सजी होली का स्वागत विभिन्न क्षेत्रों के लोग अपने-अपने तरीके से करते हैं। कृष्ण और राधा के प्रेम के प्रतीक मथुरा वृंदावन में होली की धूम १६ दिन तक छाई रहती है। वसंत पंचमी से मंदिरों में ठाकुर जी को गुलाल लगाने की शुरूआत कर दी जाती है। यहाँ की होली को देखने के आकर्षण में लोग खिंचे हुए देश के कोने-कोने और यहाँ तक कि विदेशों से भी चले आते हैं।
कहा जाता है कि बचपन में कृष्ण राधा के गोरे वर्ण ऒर अपने कृष्ण वर्ण के कारण यशोदा मैया से शिकायत किया करते थे, तो एक दिन उन्हें बहलाने के लिए राधा जी के गोरे गालों पर रंग लगा दिया। तब से इस क्षेत्र के लोग रंग और गुलाल लगाकर एक-दूसरे से स्नेह बांटते हैं। इस पर्व की अनुपम छटा राधारानी के गाँव बरसाने और नंदगाँव में भी नजर आती है। बरसाने की लट्ठमार होली तो विश्व प्रसिद्ध है। पुरुष अपने हाथों में ढाल लेकर अपना बचाव करते हुए उन्हें रंग लगाते हैं।
◾हरियाणा की होली-
हरियाणा में होली (धुलैंडी) के दौरान भाभी-देवर के रिश्ते की मिठास की अनोखी मिसाल दिखाई पड़ती है। जब भाभियाँ अपने देवर को प्यार से पीटती हैं और देवर सारे दिन उन रंग लगाने की कोशिश में रहते हैं। यहाँ होली को धुलैंडी का नाम दिया गया है।
◾महाराष्ट्र-गुजरात की होली-
महाराष्ट्र और गुजरात के क्षेत्रों में मटकी फोड़ होली की परंपरा प्रचलित है। पुरुष मक्खन भरी मटकी को फोड़ते हैं, जिसे महिलाएँ ऊँचाई पर बांधती हैं। इसे फोड़ कर रंग खेलने की परंपरा कृष्ण के बाल रूप की याद दिलाती है। जब पुरुष इन मटकियों को फोड़ने के लिए पिरामिड बनाते हैं, तब महिलाएँ होली के गीत गाती हुई इन पर बाल्टियों व पिचकारियों में रंग भर कर फेंकती हैं। उस समय मौज-मस्ती का यह पर्व पूरे शबाब पर नजर आता है।
◾बंगाल में होली-
बंगाल में होली का ‘डोल पूर्णिमा’ नामक स्वरूप प्रचलित है। इस दिन प्रसिद्ध वैष्णव संत महाप्रभु चैतन्य का जन्मदिन माना जाता है। डोल पूर्णिमा के दिन भगवान की अलंकृत प्रतिमा की शोभायात्रा निकाली जाती है और भक्तगण पूरे उत्साह के साथ इसमें भाग लेते हुए हरि की उपासना करते हैं। ऐसे ही गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित शांति निकेतन में होली को ‘वसंतोत्सव’ के रूप में मनाया जाता है।
◾पंजाब में होली-
सिख धर्म में भी होली का बहुत महत्व है। सिख धर्मानुयायी इस पर्व को शारीरिक-सैनिक प्रबलता के रूप में देखते हैं। होली के अगले दिन ‘अनंतपुर साहिब’ में ‘होला मोहल्ला’ का आयोजन होता है। ऐसा माना जाता है, कि इस परंपरा की शुरूआत दसवें व अंतिम ‘गुरु गोविंद सिंह जी’ ने की थी।
◾मणिपुर में होली-
देश का हर कोना होली के रंगों से रंगा दिखाई पड़ता है, तो मणिपुर में रंगों का यह त्यौहार ६ दिन तक मनाया जाता है। इस पर्व पर यहाँ के पारंपरिक नृत्य ‘थाबल चोंगबा’ का आयोजन भी किया जाता है। इस तरह से होली का यह रंग-बिरंगा पर्व पूरे देश को प्रेम और सौहार्द से सराबोर कर देता है।