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रंगों का मायाजाल

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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यदि रंग न होते तो..? हम सभी ने श्वेत-श्याम तस्वीरें और फिल्में देखी हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि ये दुनिया कैसी लगती। इन्द्रधनुष में ७ रंग है, जो प्रिज्म में स्पष्ट दिखता है। श्वेत और श्याम मिला कर ९ रंग है, इन्हीं ७ मुख्य रंगों के एक-दूसरे के मिश्रण से सैकड़ों रंग बनते हैं।
न जाने क्यों मुझे सब रंग अच्छे लगते हैं। कोई पूछ ले तुम्हें कौन-सा रंग भाता है ? मैं कदाचित सही उत्तर नहीं दे पाऊँगी। हर रंग अपनी जगह सुंदर है, हर रंग की महत्ता है। गुलाब अपनी जगह, गुड़हल अपनी जगह।
रंगों से चिकित्सा विज्ञान भी है। नवग्रह के भी अपने रंग हैं और प्रभावित करते हैं। ये रंग ही है, जो जीवन में रंग भरते और जीवन के रंग हरते हैं।

संसार में हर चेतन अचेतन पदार्थ एक नहीं, कई रंगों में पाया जाता है। कई रंग के फूल, पर्वत, प्रकृति से जीव जगत और मनुष्य तक।
मनुष्य के रंगों का निर्धारण जलवायु से हुआ, मनुष्य की त्वचा वातावरण से समझौता करते हुए सुनहरा, पीला, ताम्बई, भूरा, गुलाबी, गेहूँआ, श्याम, पिच, स्लेटी, होता गया, जो आनुवांशिक हो गया। प्रकृति या ईश्वर प्रदत्त रंग- रूप आज चिकित्सा और सौन्दर्य विज्ञान की मदद से मानव बहुत हद तक बदल भी सकता है। माईकल जैक्सन अपनी संपूर्ण त्वचा की प्लास्टिक सर्जरी करवा कर नीग्रो से यूरोपियन हो गए थे। बाकी सुन्दरता के लिए हर अंग की प्लास्टिक सर्जरी सुविधा है।
अब यहाँ प्रश्न यह है कि हम प्रकृति या ईश्वर प्रदत्त त्वचा के रंगों को क्यों स्वीकार नहीं करते ?स्वाभाविक है कि सुंदरता हर किसी को आकर्षित करती है, किन्तु मानव सुंदरता का पैमाना त्वचा के रंगों में लगाता है तो आज का सभ्य शिक्षित मानव मन वहीं असभ्य मानव में परिवर्तित हो जाता है और काला मन लेकर गोरी चमड़ी ढूंढने लगता है। मन सवाल करता है कि क्या सुंदरता सिर्फ गोरी त्वचा में है ? और क्या गोरी त्वचा है, इस कारण काली त्वचा वालों के साथ दोयम समझ भेदभाव होना चाहिए ? होना तो नहीं चाहिए, लेकिन ऐसा होता है। काली मानसिकता देश के राष्ट्रपति में भी रंगभेद ढूँढ लेता है। इतिहास मनुष्य का रंग-रूप भूल जाता है। याद रखता है उसके द्वारा किया सुकर्म-कुकर्म।
भारत में हर प्रकार की जलवायु होने से यहाँ हर वर्ण के लोग पाए जाते हैं। इस कारण सामाजिक पारिवारिक बहुत-सी सच्चाइयाँ सभ्य समाज का मुँह चिढ़ाती रहती है।
मैंने कई परिवार देखे हैं कि गोरी त्वचा के महत्वाकांक्षी, काले मन और स्वयं भी काले तन वाले युवक का विवाह नहीं हो पा रहा होता है।धन-दहेज के लालच में, या किसी कारण से काली लड़की से ब्याह हो जाए तो वह गृहस्थी तो खींचता है, पर कभी सर्वगुण सम्पन्न पत्नी को भी प्रेम और सम्मान न दे पाता, न दिला पाता है। जैसे काले लोगों के भीतर अनुभूति या आत्मा न हो। बात-बात में नीचा दिखाना-प्रताड़ना करने में अपनी मर्दानगी की सुंदरता प्रदर्शित करते हैं। आज के समय में गोरी युवतियाँ भी किसी कारण माँ-पिता की इच्छा से काले युवक से ब्याह कर ले तो वे भी अपने भीतर का आक्रोश अपनी गृहस्थी और ससुराल वालों पर उतारती है एवं काले पति को पैरों की जूती समझ चलती है।
कई जगह ये भी देखा कि गौर वर्णी सुंदर पति या पत्नी प्रेयसी प्रेमी पाकर सारे कर्तव्य भूल त्वचा के आकर्षण में संसार को भुला कर हँसी के पात्र भी बनते हैं।
पहली बार में रंग आकर्षित अवश्य करता है, किन्तु बाद में समझदार व्यक्ति व्यवहार के गुण-दोषों के आधार पर व्यक्ति की ओर संबंध रखता है, लेकिन मूर्ख व्यक्ति रंगों की तुला में तुलते-तौलते समय गुजार देते हैं।
ऐसा भी नहीं कि हर सुंदर व्यक्ति काले दिल का ही हो, बहुत से ऐसे लोग मैंने देखे हैं, जो जितने तन से, उससे भी उजले मन से होते हैं। यह पालन-पोषण, घरेलू संस्कार और माहौल पर निर्भर करता है। कई बार गोरी त्वचा और सुंदरता स्त्रियों के लिए आफत भी बन जाती है। सुंदर स्त्रियों को पाने के लिए बर्बरों और जाहिलों ने कितने युद्ध किए, राज्य लिए-दिए गए, कितनी संस्कृतियाँ बनी-मिटी, इतिहास ऐसी सत्य कहानियों से भरा पड़ा है।
एक समय था कुल, खानदानी और संस्कारी परिवारों की स्त्रियों को सुंदर समझा जाता था। वो जैसी भी रंग-रूप की हो, बस सुंदर थी। इस पर एक कहावत भी है.. कुल बिहावय कन्हार जोतय। यानी कभी कोई दु:ख नहीं होता। यह भाव और इस भाव को मान कर चलने वाला समाज कितने ऊंचे विचारों के परिष्कृत मष्तिष्क का रहा होगा, समझा जा सकता है जहाँ त्वचा के रंगों का कोई खेल, कोई रोल नहीं था।

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।