डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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ये रिश्तों की दुनिया है,
बड़ा अनोखा है प्यार
अगर समझ सके इसे,
है ये जिन्दगी का आधार।
ईश्वर की ये रचना,
बड़ी ही खुबसूरत
बिना रिश्ते की जाने,
ना क्या होगी सूरत।
रिश्ते बिना तो जिन्दगी,
बदरंग और नीरस अधूरी
परिवार और समाज की,
रह जाएगी कल्पना कोरी।
प्यार, ममता और वात्सल्य,
का ना दिखेगा नजारा
मानव से मानवता का,
ना मिल पाएगा इशारा।
मनुज और पशु में ना,
फर्क कुछ भी ना होता
पशु की तरह वह भी,
दर-दर को भटकता।
ये रिश्ते की दुनिया हमें,
बहुत कुछ है सिखाती
सुख-दुख में मिलकर,
रहना-जीना सिखाती।
बिना रिश्ते की ना होगी,
जिन्दगी ये मुकम्मल
मिलती है इसमें खुशी,
और जीने का सम्बल।
ये रिश्तों की दुनिया,
बड़ी मोहक,निराली
ना होता प्यार-मुहब्बत,
ना गुलशन, ना माली।
ये रिश्ते ही तो हैं,जो
हम संस्कार में ढलते
रह जाते वरना अपने,
हर ख्वाब रीते के रीते।
रिश्तों से ही जिन्दगी,
गुलशन-सी महकती।
प्यार और एहसास की,
कमियाँ भी ना खलती॥