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लघुकथाएँ सुई की भाँति, तत्काल प्रभाव डालती-डॉ. सुलभ

पटना (बिहार)।

सिद्धेश्वर द्वारा संपादित इस ऐतिहासिक लघुकथा पुस्तक में उनके ८ वर्षों का श्रम झलकता है। निश्चित तौर पर यह एक ऐतिहासिक और संग्रहणीय पुस्तक है। लघुकथाएँ सुई की भाँति पाठक-मन पर तत्काल प्रभाव डालती हैं। इसके शिल्प और गठन में ही इसका सार तत्व छुपा रहता है। साहित्य की यह विधा अत्यंत लोकप्रिय हो रही है।
यह बात लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने कही। कवि व कथाकार सिद्धेश्वर द्वारा संपादित देश के अनेक चर्चित लघुकथाकारों की २५० लघुकथाओं के संग्रह ‘२१वीं सदी की लघुकथाएँ’ का यह लोकार्पण आयोजन बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हुआ। संग्रह में पुस्तक की सह-संपादक ऋचा वर्मा, भगवती प्रसाद द्विवेदी, सुकेश साहनी, योगेन्द्र नाथ शुक्ल, योगराज प्रभाकर, डॉ. सतीश राज पुष्करणा और सतीश राठी समेत २२५ कथाकारों की लघु कथाएँ संकलित हैं।
लोकार्पण अवसर पर साहित्यकार और सम्मेलन के साहित्य मंत्री भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा, कि यह प्रसन्नता का विषय है कि इन दिनों साहित्य की लघुकथा विधा में बहुत कार्य हो रहे हैं और प्रकाशन भी हो रहे हैं, किंतु विशिष्टताओं के कारण सिद्धेश्वर और ऋचा वर्मा द्वारा संपादित यह पुस्तक अपना विशेष स्थान रखती है, जिससे लघुकथा को शाखीय रूप में समझने में पाठकों को सहायता प्राप्त होगी।
आरंभ में अतिथियों का स्वागत संपादक सिद्धेश्वर ने किया। सह-संपादक डॉ. वर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।