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लघुकथाओं का सामाजिक दृष्टिकोण

गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा (बिहार)
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जब ओडिशा के एक कथाकार मित्र ने मुझे यह खुले मन से कहा -“हिन्दी में लघुकथाएँ प्रामाणिक एवं प्रभावी ढंग से लिखी जा रही है। उड़िया भाषा में हिन्दी की लघुकथाओं का अनुवाद हो रहा है, इससे लगता है कि हिन्दी की लघुकथाओं ने बहुत प्रगति की है” तो मुझे भी हिन्दी लघुकथाओं की संतोषप्रद प्रगति पर गर्व हुआ।

यह निर्विवाद सच है, हिन्दी की लघुकथाओं का सामाजिक कैनवास विस्तृत होता जा रहा है। ये मानवीय हितों, दुखों और परिवेश से पूरी तरह जुड़ गई हैं। मनुष्य और उसके आचरण के साथ ये लघुकथाएँ सम्मिलित होकर उनकी प्रकृति एवं प्रवृत्ति को यथार्थ के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करती हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं कि आज हमें अपने को भारतीय कहने पर शर्म आने लगी है। इसकी वजह यह है कि भारतीय नागरिकों में नागरिकता की भावना विलोपित हो गई! नैतिक आदर्श, चारित्रिक स्तर और राष्ट्रीयता किसी में नहीं रही। अब धन से किसी भी आदमी को खरीदा और बेचा जा सकता है। ऐसी स्थिति में लघुकथाओं का सामाजिक तथा नैतिक दायित्व ज्यादा जिम्मेदाराना हो जाता है। कारण, सबसे पहले जरूरत आज के आदमी को उसके नैतिक मूल्यों की पहचान कराकर सामाजिक कर्तव्यों तथा राष्ट्रीय हितों के प्रति आगाह कराना है, ताकि जब समय बदले तो वैयक्तिक हित के लिए राष्ट्रीय चेतना की बलि की गलत परम्पराओं में बदलाव आए।
सामाजिक दृष्टिकोण, नैतिक आदर्श, राष्ट्रीय चरित्र के साथ ही सामाजिक चारित्रिक मूल्यों की हिफाजत करना लघुकथाओं का जरूरी दैनिक कार्य है! लघुकथाएँ यह कार्य जितनी पाठकता हासिल करने में सफल होंगी, उतने ही कारगर ढंग से सम्पादित करेंगी! इसलिए जरूरी है लघुकथाओं की पाठकता में आशातीत वृद्धि की जाए। पिछले तथा इस दशक में लघुकथाओं की पठनीयता तथा जनरुचि निश्चित ही विकसित हुई है, परन्तु संपूर्ण विकास बिन्दु अभी प्राप्त नहीं हुआ है। सही परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो लघुकथाएँ अभी पूर्ण रूपेण विकसित नहीं हुई हैं। अभी पारम्परिक पड़ाव की यात्रा पूर्ण कर रही है। इसलिए अभी जो लघुकथाएँ आ रही हैं, उनमें अधिकांश कच्चे माल की तरह हैं, बहुत कम ऐसी लघुकथाएँ पाठकीय निगाह में आती हैं, जो पूर्ण वैचारिक तथा गहरे चिन्तन और चिन्ताओं के प्रति सजग एवं सचेत हैं।
लघुकथाओं में लघुकथा लेखक कहाँ रहता हैं, यह एक निश्चित ही विचारणीय सवाल है। लघुकथाओं में लघुकथाकार शब्द यात्रा करता हुआ अर्थों को खेलता है। शब्द, अर्थ, भाषा, संवेदना के बीच कारीगर की तरह रचना को गढ़ता हुआ उसे एक विशिष्ट शैली और शिल्प देता है, तथा इसी के साथ वह जन-जन के जीवन से जुड़ता हुआ उनके बीच के सुख-दु:ख, अतिवादी अत्याचार, अनैतिकता, शोषण, आपाधापी, अपराधी प्रवृत्तियों की समीक्षा करते हुए जनहितों की हिफाजत करता है। इसके साथ ही जन जागरण एवं नये वैचारिक आन्दोलन को ताकत देते हुए जन अपराध के विरुद्ध लड़ाई की पूर्ण तैयारी करता है,
इसलिए एक जनबोधी लघुकथा निश्चित ही ईमानदार सैनिक का कर्तव्य, पूर्ण जिम्मेदारी के साथ सम्पादित करती है।
जब लघुकथा के जनपक्ष की समीक्षा और उसके योगदान का आकलन करते हैं तो उसके साहित्यिक सरोकारों की उपेक्षा नहीं की जा सकती। साहित्यिक मूल्यांकन के अनेक मानदण्ड हैं, लेेकिन खास तौर से लघुकथा के कथानक, भाषा, शैली, शिल्प, कलात्मकता तथा प्रस्तुतिकरण के तौर-तरीके पर ज्यादा ध्यान केन्द्रित होता है, साथ ही उसका वैचारिक पक्ष एवं उद्देश्य लघुकथा के बेहतर मूल्य-आकलन के औजार है।
मैक्सिम गोर्की का कथन है- “विचारों का सृजन धरती पर होता है, वे श्रम की मिट्टी से फूटते हैं और वे पर्यवेक्षण, तुलना, अध्ययन की सामग्री का और तथ्यों का बार-बार प्रयोग करते हैं।” स्पष्ट है विचार-रचना की धरती पर खुद-ब-खुद फूट कर विकसित होते हैं। रचनाकार माटी की तरह इनको रचना में फुलवारी-सा सहेजता है और परिपक्व होने का पूरा-पूरा अवसर देता है।
“सत्य हमेशा बुरा होता है”, इसलिए सच्चाई भरी कथा की अक्सर उपेक्षा होती है। ठीक सच्चे आदमी की तरह। मैक्सिम गोर्की भी जानते हैं “जो कुछ बुरा है सत्य होगा।”
लघुकथाओं में कौशल का महत्व अत्यधिक है। कौशल कोई अलग नहीं होता। कौशल भाषा से ही शुरू होता है। कोन्सतान्सिन फेदिन ने इस संबंध ये स्पष्टत: लिखा है-“लेखक के कौशल की बात भाषा से शुरु होती है। किसी भी कृति की मौलिक सामग्री हमेशा भाषा रहेगी। ललित साहित्य शब्दों की कला है। किसी साहित्यिक कृति का रचना विन्यास उसके कलात्मक रूप का अत्यधिक महत्व उससे अधिक निर्णायक है। लेखकीय अनुभवों पर निर्भर रहता है, जो एक निश्चित कला है।”
अलेक्सेइ टालस्टाय का कथन है–‘ऐसे शब्दों में जो स्वाद में, देखने में, सुगन्ध में अपने हैं, जन्म भूमि के हैं-इसी में है समस्त जातिय कला और यही चीजें हैं, जिनसे सच्ची कला जन्म लेती हैं।”
रचना लेखक का शब्द भंडार, संवेदनाएँ तथा अनुभव एवं अनुभूतियों का धनाड्य होना नितांत जरूरी है। शब्दों के इस्तेमाल की भी एक तकनीक होती है, जो रचना को ताकत देकर रोचकता प्रदान करती है। इस सम्बंध में ब्लादीमीर मयाकोव्स्की का कथन है-“शब्द–संशोधन की अत्यन्त मौलिक तकनीक और विधियाँ, जो वर्षों से कठोर श्रम के बाद ही प्राप्त होती है।”
लेखन कला अथवा लेखन कौशल हासिल करना आसान नहीं, इसके लिए वर्षों परिश्रम करना पड़ता है। तप-तपाकर भाषा तैयार होती है। लेखन कौशल के संबंध में कोन्तस्तानिस्न फेदिन ने स्पष्टत: लिखा है-“लेखन कौशल की प्राप्ति अवश्य ही कोई आसान काम नहीं।”
चेखव ने भी बढि़या रचना लेखन के संबंध में विचार व्यक्त करते हुए एक पत्र में यह उल्लेख किया है-“कोई चीज जितनी बढ़िया होगी, उतनी ही आपको उसकी त्रुटियाँ दिखाई देंगी और उतना ही कठिन उसको सुधारना होगा।”
कोई भी रचनाकार को किसी विधा विशेष में कुशलता हासिल करने के बाद उस पर काम करना बंद नहीं करना चाहिए, क्योंकि कुशलता की सीमा नहीं होती।
नयी भाषा, तत्व सामग्री को नया बना देती है और पुरानी भाषा कथा को पुराना कर देती है, इसलिए सजग रचनाकार को भाषा के प्रति जागरुक रहना चाहिए तथा उसकी तैयारी निरन्तर करते हुए तरोताजा बनाए रखना नितांत आवश्यक है। भाषा ही सामग्री को ताकतवर बनाती है और वह ‘जन जागरण, जन चेतना में वृद्धि करती हुई जन मानसिकता को लगातार बदलती है।” इन लघुकथाओं में समर्थ भाषा के विकसित होने की संभावना आँकी जा सकती है। इसके लिए लघुकथाकारों का लगातार ध्यान आकर्षित होते रहने की नितांत जरूरत है।

परिचय–गोपाल मोहन मिश्र की जन्म तारीख २८ जुलाई १९५५ व जन्म स्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)है। वर्तमान में आप लहेरिया सराय (दरभंगा,बिहार)में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-ग्राम सोती सलेमपुर(जिला समस्तीपुर-बिहार)है। हिंदी,मैथिली तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले बिहारवासी श्री मिश्र की पूर्ण शिक्षा स्नातकोत्तर है। कार्यक्षेत्र में सेवानिवृत्त(बैंक प्रबंधक)हैं। आपकी लेखन विधा-कहानी, लघुकथा,लेख एवं कविता है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी भावनाएँ व्यक्त करने वाले श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक- फणीश्वरनाथ ‘रेणु’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल दास ‘नीरज’, हरिवंश राय बच्चन एवं प्रेरणापुंज-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में बहुमुखी विकास और दुनियाभर में पहचान बना रहा है I हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की प्रबल धारा बह रही हैI”