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लालच

डॉ. प्रताप मोहन ‘भारतीय’
सोलन(हिमाचल प्रदेश)
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रेनू एक मध्यम परिवार की बहू थी। उसको कपड़ों का बहुत शौक था। दिन में २ बार कपड़े बदलना उसकी आदत में शुमार था। उसकी अलमारी में कभी खत्म न होने वाले कपड़ों का भंडार था। इसके बाद भी उसका मन आज एक और साड़ी खरीदने के लिए लालायित था। ‘रक्षाबंधन’ आने वाला था और उसने सोचा कि, यह नई साड़ी मैं रक्षा बंधन को पहनूँगी।
शाम को उसका पति राजेश जब घर आया तो पति को नाश्ता देकर रेनू ने कहा,-“बाजार चलिए, आज एक साड़ी लेनी है।”
राजेश थका हुआ घर आया था। इसके बाद भी उसने ना नहीं की और फटाफट रेनू के साथ बाजार को निकल पड़ा।
राजेश और रेनू शहर के सबसे बड़े शो-रूम पर पहुँचे। रेनू ने ढेर सारी साड़ियाँ देखी। उनमें से १ साड़ी रेनू को पसंद आ रही थी, परन्तु रेनू का मन पास वाले एक शो-रूम में साड़ियाँ देखने का था। सेल्समैन को यह अनुभव हो गया कि, रेनू को यह साड़ी पसंद आ रही है तो उसने झट से रेनू से कहा,-“मैडम यह साड़ी आप पर बहुत जँचेगी। इसका कपड़ा भी बहुत अच्छा है तथा रंग भी, अंतिम पीस बचा है हमारे पास।”
रेनू ने सोचा, अंतिम पीस है और मैं लौट कर आई, तब तक अगर बिक गया तो ? इसी उधेड़बुन में रेनू ने यह साड़ी खरीद ली।

जैसे ही रेनू और राजेश शो- रूम से बाहर निकले, सेल्समैन ने उसी रंग और उसी डिजाईन की साड़ी स्टॉक से निकाल कर शो-केस में रख दी।

परिचय-डॉ. प्रताप मोहन का लेखन जगत में ‘भारतीय’ नाम है। १५ जून १९६२ को कटनी (म.प्र.)में अवतरित हुए डॉ. मोहन का वर्तमान में जिला सोलन स्थित चक्का रोड, बद्दी(हि.प्र.)में बसेरा है। आपका स्थाई पता स्थाई पता हिमाचल प्रदेश ही है। सिंधी,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले डॉ. मोहन ने बीएससी सहित आर.एम.पी.,एन. डी.,बी.ई.एम.एस.,एम.ए.,एल.एल.बी.,सी. एच.आर.,सी.ए.एफ.ई. तथा एम.पी.ए. की शिक्षा भी प्राप्त की है। कार्य क्षेत्र में दवा व्यवसायी ‘भारतीय’ सामाजिक गतिविधि में सिंधी भाषा-आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति का प्रचार करने सहित थैलेसीमिया बीमारी के प्रति समाज में जागृति फैलाते हैं। इनकी लेखन विधा-क्षणिका,व्यंग्य लेख एवं ग़ज़ल है। कई राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन जारी है। ‘उजाले की ओर’ व्यंग्य संग्रह)प्रकाशित है। आपको राजस्थान द्वारा ‘काव्य कलपज्ञ’,उ.प्र. द्वारा ‘हिन्दी भूषण श्री’ की उपाधि एवं हि.प्र. से ‘सुमेधा श्री २०१९’ सम्मान दिया गया है। विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अध्यक्ष(सिंधुडी संस्था)होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य का सृजन करना है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद एवं प्रेरणापुंज-प्रो. सत्यनारायण अग्रवाल हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी को राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान मिले,हमें ऐसा प्रयास करना चाहिए। नई पीढ़ी को हम हिंदी भाषा का ज्ञान दें, ताकि हिंदी भाषा का समुचित विकास हो सके।”