दिल्ली
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अठारहवीं लोकसभा का पहला सत्र शुरू चुका है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विपक्ष इस बार अपनी बढ़ी हुई शक्ति का अहसास कराते हुए आक्रामक होने से नहीं चूकेगा। यही वजह है कि, विपक्ष ने परीक्षा में गड़बड़ी, अग्निवीर व कार्यवाहक अध्यक्ष जैसे मुद्दों को लेकर आक्रामक रुख दिखाने की रणनीति बनाई है। वैसे वह पहले ही सत्ता पक्ष के गठबंधन के सहयोगियों को लोकसभा अध्यक्ष पद की मांग के लिए उकसाने में लगा हुआ है। एवं वहीं स्वयं के लिये लोकसभा के उपाध्यक्ष पद की मांग कर रहा है। विपक्ष ने नीट-यूजी पर्चा लीक व अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के स्थगित होने के मामले में सरकार को घेरने एवं संसदीय कार्रवाई को बाधित करने की रणनीति बनाई है। बेहतर संख्या बल के चलते विपक्ष का उत्साहित होना स्वाभाविक है और उसके नेताओं की ओर से विभिन्न ज्वलंत मुद्दों पर सरकार को कठघरे में खड़ा करने की तैयारी में भी कुछ अनुचित नहीं, लेकिन इस तैयारी के नाम पर संसद में हंगामा और शोर-शराबा करके ऐसी परिस्थितियाँ नहीं पैदा की जानी चाहिए, जिससे संसद चल ही न पाए। लंबे समय से यह देखने में आ रहा है कि, विभिन्न मुद्दों पर सरकार से जवाबदेही के नाम पर विपक्ष संसद में हंगामा और अव्यवस्था पैदा करना उचित समझता आ रहा है। उसके तेवर इस बार ज्यादा ही उग्र दिख रहे हैं, जो संसदीय परम्परा के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। सांसद चाहे जिस दल के हों, उनसे शालीन एवं सभ्य व्यवहार की अपेक्षा की जाती है। लेकिन सांसद अपने दूषित एवं दुर्जन व्यवहार से संसद को शर्मसार करते हैं तो यह लोकतंत्र के सर्वोच्च मन्दिर की गरिमा के प्रतिकूल है।
संसद राष्ट्र की सर्वोच्च संस्था है। देश का भविष्य संसद के चेहरे पर लिखा होता है। यदि वहाँ भी शालीनता, मर्यादा एवं सभ्यता भंग होती है तो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने के गौरव का आहत होना निश्चित है। आजादी के अमृतकाल तक पहुँचने के बावजूद भारत की संसद यदि सभ्य एवं शालीन दिखाई न दे तो ये स्थितियाँ दुर्भाग्यपूर्ण एवं विडम्बनापूर्ण ही कही जाएगी।संसद की सार्थकता केवल इसमें नहीं है कि, विभिन्न मुद्दे उठाए जाएं बल्कि इसमें है कि, उन पर गंभीर एवं शालीन तरीके से चर्चा होकर राष्ट्रहित में प्रभावी निर्णय लिए जाएं। दुर्भाग्य से संसद में राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर ऐसी कोई चर्चा कठिनाई से ही होती है, जिससे देश को कोई दिशा मिल सके और समस्याओं के समाधान खोजे जा सकें। उचित यह होगा कि, संसद में दोनों ही पक्ष संसदीय कार्यवाही के जरिए एक उदाहरण पेश करें, नयी संभावनाओं एवं सौहार्द का वातावरण बनाते हुए नई उम्मीदों एवं संकल्पों के सत्रों का संचालन होने दें, क्योंकि उत्सुकता एवं कौतूहल का वातावरण पक्ष-विपक्ष के नवनिर्वाचित सांसदों में ही नहीं, बल्कि आम जनता में भी है। गठबंधन की स्थितियों के कारण यह लोकसभा पिछली लोकसभा से भिन्न होगी।
यह निश्चित है कि, सार्वजनिक जीवन में सभी एक विचारधारा, एक शैली व एक स्वभाव के व्यक्ति नहीं होते। अतः आवश्यकता है दायित्व के प्रति ईमानदारी के साथ-साथ आपसी तालमेल व एक-दूसरे के प्रति गहरी समझ एवं सौहार्द भावना की। जनता के विश्वास पर खरे उतरते हुए नए भारत-सशक्त भारत को निर्मित करने की।
सेवा एवं जनप्रतिनिधित्व का क्षेत्र ‘मोजॉयक’ है, जहां हर रंग, हर दाना विविधता में एकता का प्रतिक्षण बोध करवाता है। अगर हम सांसदों में आदर्श स्थापित करने के लिए उसकी जुझारू चेतना को विकसित कर सकें तो निश्चय ही आदर्शविहीन असंतुष्टों की पंक्ति को छोटा कर सकेंगे और संसद को गरिमापूर्ण मंच बना पाएंगे।
नरेन्द्र मोदी तीसरी बार सत्ता में लौटे हैं। भारतीय संसदीय इतिहास में ऐसा दूसरी बार है कि, जनता ने किसी सरकार को लगातार तीसरी बार शासन करने का अवसर दिया है। ये मौका ६० साल बाद आया है। अगर जनता ने ऐसा फैसला किया है तो फैसले का स्वागत होना चाहिए, लेकिन ऐसा न होना संसद के साथ-साथ भारत के लिए परेशानी का कारण है। आज भारत दुनिया की तीसरी आर्थिक महाशक्ति बनने के साथ अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने की ओर गतिशील है। भारत की बात दुनिया बड़ी ध्यान से सुनती है, वहीं दुश्मन देश भारत पर तिरछी नजर डालने से पहले सौ बार सोचते हैं। यह भारत की बड़ी ताकत का द्योतक है, जिसे पक्ष एवं विपक्ष मिलकर सहेजें और नए आयाम उद्घाटित करें।
जरूरत इस बात की भी है कि, संसद को शुद्ध साँसें मिले, संसदीय जीवन जीने का शालीन, मर्यादित एवं सभ्य तरीका मिले।