डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
*************************************************
वतन से कर मुहब्बत, साँस-साँसों में बसाना,
लहू की हर धड़कन को, देश-यज्ञ में चढ़ाना।
मिटे जो स्वार्थ भीतर, तभी तो सूर्य उगता-
माँ भारती के चरणों में, तन-मन-धन लुटाना॥
कठिन पथ हो, अँधेरा हो, न पीछे पग हटाना,
तिरंगे की शिखा बनकर, गगन तक झिलमिलाना।
न माँगे फूल जीवन से, न चाहें सुख सुहाना-
अगर मिटना भी पड़े तो, वतन पर मुस्कुराना॥
नदी-नभ-वन-शैल सबमें, बहे एक प्राण-धारा,
यही है देश-धर्म हमारा, यही है राष्ट्र-नारा।
शहीदों की शहादत को, न भूलो एक पल भी-
इसी पुण्य स्मृति से ही, बना भारत हमारा॥
जब बज्रों-सी विपत्ति आए,न आँखों में हो पानी,
सिपाही-सा खड़ा रहना, लिए अडिग कहानी।
वतन से कर मुहब्बत का, यही तो है तक़ाज़ा-
कि हर संकट घड़ी में, बने ढाल हम निडरानी॥
चलो लिख दें लहू से आज, भारत का भविष्य,
न हो परतंत्रता का फिर, हमारे स्वप्न पर स्याह।
माँ भारती के मस्तक पर, सजे विजय-तिलक जब,
कहे जग ये वही बेटे, जिन्होंने रच दिया इतिहास॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥