कुमकुम कुमारी ‘काव्याकृति’
मुंगेर (बिहार)
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नारी से नारायणी (महिला दिवस विशेष)…
नारी तुम नारायणी हो, शक्तिपुंज हो, जीवनदायिनी हो। वास्तव में हमारे समाज में नारी को नारायणी समझा जाता था। उन्हें सर्वोच्च स्थान प्राप्त था, क्योंकि नारी को सृष्टि का आधार माना जाता था। देवता भी इनकी गोद में खेल खुद को धन्य समझते थे। नारी उच्च संस्कारों की परिभाषा थी, मर्यादाओं की पराकाष्ठा थी।सारी सृष्टि इनके समक्ष नतमस्तक हो खुद को धन्य समझती थी, लेकिन आज परिस्थितियाँ बदल चुकी है। आज नारी शोभा की वस्तु बनकर रह गई है। पुरूष प्रधान इस समाज ने नारी को भोग-विलास की वस्तु बना कर रखा है। आज की नारी पुरूषों के हाथों की कठपुतली बन उनके इशारों पर नाचने को मजबूर है।
आखिर क्या कारण है, कि सृष्टि की रचना करने वाली नारी आज इतनी लाचार व असहाय बनी हुई है। क्यों अस्तित्व व पहचान को भूलकर पुरूषों के लिए साजो-सामान की वस्तु बनकर रह गई है ?
आज चाहे सिनेजगत हो या टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम या विज्ञापन, हर जगह नारी को अर्धनग्न अवस्था में परोसने की जो अनीतिगत परम्परा पैर पसारे जा रही है, इसके पीछे की मानसिकता क्या है ? यह विचारणीय विषय है…। आधुनिकता के नाम पर जिस उच्छृंखलता को अपनाया जा रहा है, यह कहाँ तक सही है ? आज नारी जीवन पर फैशन व पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। समाज में अश्लीलता चरम सीमा तक पहुंच चुकी है।सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए आज की नारी अपने शील के प्रति बेपरवाह है ,जो सभ्य समाज के लिए बहुत बड़ी बाधा है। बेटी को उच्छृंखल बनाना तो आसान है, पर साथ में यह भी ध्यान देना होगा कि यह आजादी हमारी शर्मिंदगी का कारण न बन जाए। हमें मर्यादाओं की सीमा तय करनी होगी और समझना होगा, कि इनका उल्लंघन करने पर कौन से दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
आज हर जगह नारी सशक्तीकरण की बातें हो रही है, पर कैसा नारी सशक्तीकरण ? नारी को कम से कम कपड़े में दिखाना ही नारी सशक्तीकरण है क्या ? ये कैसी विकृत मानसिकता के शिकार हम होते जा रहे हैं। बहुत हो गया स्वतंत्रता के नाम पर स्वच्छंदता का नंगा नाच। अब जागो नारी जागो…, अपनी शक्ति को पहचानो, अपनी अस्तित्व की रक्षा करो। तुम ईश्वर की अमूल्य कृति हो, अपने महत्व को समझो और खुद का जयगान करो तथा अपनी गौरवपूर्ण स्थिति को प्राप्त करो।
हे नारी तुम आद्याशक्ति हो,
तुम किसी से डर नहीं सकती
जग में ऐसा कोई काम नहीं,
जो तुम कर नहीं सकती।
आज विचारणीय विषय यह है, कि आखिर नारी की इस दुर्दशा के लिए जिम्मेवार कौन है ? विधाता ने जब विश्व रचाया, तो नर और नारी दोनों को एक-दूसरे का पूरक बना समान पद प्रदान किया। फिर क्या कारण है, कि आज की नारी को समाज में दोयम दर्जा प्राप्त है ? आखिर ऐसा क्या हुआ कि क्यों नारी अपने गौरवपूर्ण अस्तित्व को भूल स्वयं को इतना अर्थहीन बना चुकी है ? खैर, कारण, परिस्थिति या जिम्मेवार कोई भी हो, इससे निकलकर व अपने स्वभिमान को पुनः स्थापित करने के लिए नारियों को ही आगे आना होगा।
हाँ, यह भी सही है कि नारी देह से थोड़ी सुकुमारी जरूर हैं, लेकिन मनोबल की कमी नहीं है। हम उस सीता की छाया हैं, जिसने मात्र १ घास के तिनके से रावण के अहंकार का दमन किया था। फिर हम कमजोर कैसे हो सकते हैं ?
जब दूसरों को सबल बनाने में सक्षम हैं, तो खुद की अस्मिता बचाने में असक्षम कैसे हो सकते हैं ? तथाकथित पुरूष प्रधान समाज ने हमें भ्रमित कर रखा है और उनके बहकावे में आकर खुद के अस्तित्व को भूल बैठे हैं।
अब समय आ गया है, कि हम खुद को पुनः स्थापित कर अपने गौरवपूर्ण इतिहास को प्राप्त करें एवं उनको करारा जबाब दें, जो नारी को कमजोर व भोग-विलास की वस्तु समझते हैं-
हे नारी तुम अबला नहीं सबला हो,
तुम सदा ही गतिमान हो
इसलिए तुम सर्वत्र विद्यमान हो,
उठो, और अपनी शक्ति की पहचान करो
खुद को तुम दीप्तिमान करो।