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वही बनता फूलों का हार

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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फूलों की रखवाली करते,
काँटे बनकर पहरेदार।
सहता चुभन जो काँटों की,
बनता वही फूलों का हार॥

चलता जो काँटों पर राही
उसी ने अपनी मंजिल पाई,
होता उसका बेड़ा भव पार।
सहता चुभन जो काँटों की,
बनता वही फूलों का हार…॥

काँटा बनकर कभी न चुभना
जग में सबकी पीड़ा हरना,
कभी न करना किसी पे वार।
सहता चुभन जो काँटों की,
बनता वही फूलों का हार…॥

जीवन हर पल एक परीक्षा
सबसे बड़ी यही देता शिक्षा,
दुखियों पर करना उपकार।
सहता चुभन जो काँटों की,
बनता वही फूलों का हार…॥

रिश्तों की गरिमा तुम रखना
कटुक वचन न मुख से कहना,
यही जीवन पुस्तक का सार।
सहता चुभन जो काँटों की,
बनता वही फूलों का हार…॥

परिस्थितियों से जो न हारा
रब ने उसका नसीब सँवारा,
मिलता उसे सभी का प्यार।
सहता चुभन जो काँटों की,
बनता वही फूलों का हार…॥

परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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