सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश)
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मिलने-‘मिलाने आओ ‘हँसने-हँसाने आओ।
ख़्वाबों में ही सही तुम दिल गुदगुदाने आओ।
हो जाए शाम रंगीं बन जाए शब की क़िस्मत,
ह़ुस्नओ अदा के गर तुम जलवे दिखाने आओ।
तड़पें तुम्हारी ख़ातिर ‘कब तक ह़ुज़ूरे वाला,
तुम’ भी कभी तो हमसे उल्फ़त जताने आओ।
शायद के हँस पड़े यह तन्ह़ाईयों में ग़म की,
बीमार दिल से गर तुम मिलने-मिलाने आओ।
मरने के बाद शायद हो जाऊँ सुर्ख़रु ‘मैं,
तुर्बत पे मेरी तुम जो चादर चढ़ाने आओ।
इक़रार के ‘मुताबिक़ मक़तल में आ गए हम,
अब ‘तुम भी जाने जानाँ वादा निभाने आओ।
उजड़ी हुई है मेह़फ़िल ख़ामोश ऐहले दिल हैं,
दिलकश ‘फ़राज़’ कोई नग़मा सुनाने आओ॥