सम्मेलन…
पटना (बिहार) |
हमेशा सीखने की प्रवृत्ति बनी रहनी चाहिए। किसी भी रचना में लेखकीय प्रवेश नहीं होना चाहिए। लघुकथा का विषय भले पुराना हो, किंतु प्रस्तुति में नयापन होना चाहिए और पंचलाइन बेहद मारक।
यह बात मुख्य अतिथि योगराज प्रभाकर ने आभासी रूप से आयोजित लघुकथा सम्मेलन में कही। भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में इस सम्मेलन का संचालन करते हुए संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने कहा कि हिंदी साहित्य में आज सबसे अधिक चर्चित और पठनीय विधा यदि कोई है, तो वह लघुकथा है। समय का बहाना बनाकर साहित्य से दूर भाग रहे पाठकों को अपनी ओर खींचने में लघुकथा कामयाब साबित हुई है। सविश्व साहित्य में श्रेष्ठ बनने की दिशा में लघुकथा अग्रसर है। इसलिए लघुकथाकारों को अपने सृजन और अध्ययन के प्रति ईमानदारी के साथ मेहनत करने की जरूरत है।
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए अनीता रश्मि ने कहा, कि लघुकथा आज पूरे विश्व में परचम लहरा रही है। इसका कारण हमारे पुरोधाओं का निःस्वार्थ प्रयत्न है। आज किसी के पास वक्त नहीं है, तो छोटी रचना लघुकथाएँ लोगों को भाती हैं। लघुकथा के परचम लहराने के ३ कारण हैं- इसका लघु आकार, संप्रेषणीयता और पुरोधाओं की मेहनत। सम्मेलन में रचनाकारों में श्री प्रभाकर, बालेश्वर गुप्ता, अनिल कुमार जैन, नलिनी श्रीवास्तव, निर्मला कर्ण और प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे आदि की भागीदारी रही। धन्यवाद ज्ञापन ऋचा वर्मा ने किया।