शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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ज्यों पालते बच्चे को हैं इसको भी पालिये,
और प्यार-मुहब्बत की इसमें खाद डालिए।
होकर बड़ा ये काम हमारे ही आयेगा,
खाने को देगा फल ये ज़िन्दगी बचायेगा।
प्राणवायु देता है ये बात मानिये,
ज्यों पालते बच्चे…॥
देगा बयार शुद्ध बारिशें भी लायेगा,
छाया भी देगा और प्रदूषण हटायेगा।
बातों पे ध्यान दीजिए यूँ ही न टालिये,
ज्यों पालते बच्चे…॥
श्रृँगार है धरा का होती है इसमें जान,
वरदान प्रकृति का कहना हमारा मान।
अनमोल हैं ये वृक्ष यूँ इनको न काटिये,
ज्यों पालते बच्चे…॥
शैशव से बुढ़ापे तक हमारे काम हैं आते,
इन पर ही लेट आखिर श्मशान तक जाते।
क्या लिखूँ और इनका महत्व जानिये,
ज्यों पालते बच्चे को हैं इसको पालिये…॥
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है