कुल पृष्ठ दर्शन : 144

वो गाय

शीलाबड़ोदिया ‘शीलू’
इंदौर (मध्यप्रदेश )
***********************************************

स्कूल की घंटी बजी। नीला बोली,-“पावी, आज माँ को खाना बनाने में देर हो गई थी, इसलिए मैं टिफिन नहीं लाई हूँ। घर जाकर लंच बॉक्स लेकर आते हैं।”

स्कूल के बाहर निकल कर पावी बोली,-“देखो नीला, उस गाय के पेट में कितनी बड़ी गाँठ है। वह गाँठ के वजन के कारण ठीक से चल भी नहीं पा रही है।”
“हाँ पावी, बेचारी गाय को कितनी तकलीफ हो रही होगी, कितना दर्द हो रहा होगा चलने में। हम तो बोल कर अपनी तकलीफ बता सकते हैं, लेकिन यह बेजुबान जानवर अपनी तकलीफ किसको कहे और उनकी तकलीफ कौन समझेगा ?”
“चलो नीला, जल्दी चलो। लंच खत्म हो जाएगा हमें घर से टिफिन लेकर आना है। नहीं तो, देर होने पर टीचर हमें डांट लगाएंगे।”
“हाँ, हाँ पावी चलो, चलते हैं।”
इतने में गाय उनके पीछे-पीछे भागने लगती है। आगे-आगे पावी और नीला भागते हैं, उनके पीछे-पीछे गाय भागने लगती है।
“पावी देखो पीछे…।”
“हाँ नीला, हमारे पीछे गाय भाग रही है। यह हमारे पीछे क्यों पड़ी है ? हम तो इस पर दया करके उसकी बात कर रहे थे, कि इसे कितनी तकलीफ हो रही होगी, लेकिन यह तो हमारे पीछे ही पड़ गई। नीला जल्दी भागो, जल्दी नहीं तो गाय हमें मार देगी अपने बड़े-बड़े सींग से।”
“हमारा घर थोड़ी ही दूर रह गया है, जल्दी भागो।”
दोनों की साँस फूल जाती है। दोनों नीला के घर पहुँच जाते हैं और गाय दौड़ते हुए आगे की तरफ निकल जाती है। घर पहुँच कर पावी और नीला चैन की साँस लेती है।
“पावी आज तो हम बच ही गए।”
“हाँ नीला, अब हम कभी भी किसी गाय के दर्द की बात नहीं करेंगे।”