दीपेश पालीवाल ‘गूगल’
उदयपुर (राजस्थान)
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घूम-घूम नगर-नगर अपनी हसीं रात बेचता हूँ,
और वो मिले कहीं तो कहना,बात बेचता हूँ।
अगर भुखमरी है देश में रहने दो,मुझे इन सबसे क्या,
मैं तो घूम-घूम मन्दिर-मस्जिद अपनी जात बेचता हूँ।
वो मिले कहीं तो कहना,बात बेचता हूँ…
वो क्या सोचते हैं बारे में मेरे,मुझे इसकी परवाह नहीं,
मैं वो हूँ जो कभी शह तो कभी मात बेचता हूँ।
वो मिले कहीं तो कहना,बात बेचता हूँ…
मुझे कितनी भी सुविधाएं दे दो,में सुधरूँगा नहीं,
मैं देशद्रोही हूँ,हर बार विश्वासघात बेचता हूँl
वो मिले कहीं तो कहना,बात बेचता हूँ…ll